Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 549
________________ ५३० . भगवती सूत्र-श. २ उ. १० धर्मास्तिकायादि का स्पर्श वाया वि। ___७४ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेजइभागं फुसइ, णो असंखेजहभागं फुसइ, जाव-सव्वं फुसइ ? ____७४ उत्तर-गोयमा ! संखेजहभागं फुसइ, णो असंखेजहभागं फुसइ, णो संखेजे, णो असंखेने, णो सव्वं फुसइ । उवासंतराईसव्वाइं । जहा रयणप्पभाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया, एवं जावअहेसत्तमाए, जंबूदीवाइया दीवा, लवणसमुद्दाइया समुद्दा, एवं सोहम्मे कप्पे जाव ईसीपब्भारा पुढवी एए सव्वे वि असंखेजइभागं फुसइ, सेसा पडिसेहियव्वा, एवं अधम्मस्थिकाए, एवं लोयागासे वि । गाहा पुढवोदही घण-तणू कप्पा गेवेजणुत्तरा सिद्धी । संखेजहभागं अंतरेसु सेसा असंखेजा ॥ ॥ बिहयसए दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ॥ बिइयं सयं सम्मत्तं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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