Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भगवता सूत्र - श. २ उ १० धर्मास्तिकायादि की स्पर्शना
लोयं चैव फुसित्ता णं चिट्ठह, एवं अहम्मत्थिकाए, लोयागासे, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थकाए पंच वि एक्काभिलावा ।
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६९ प्रश्न- अहोलोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसइ ? ६९ उत्तर - गोयमा ! साइरेगं अधं फुसइ ।
७० प्रश्न - तिरियलोए णं भंते ! पुच्छा ! ७० उत्तर - गोयमा ! असंखेज्जइभागं फुसइ । ७१ प्रश्न - उड्ढलोए णं भंते ! पुच्छा ?
७१ उत्तर - गोयमा ! देसूणं अदुधं फुसइ ।
विशेष शब्दों के अर्थ - महालए - बड़ा, फुडे — स्पर्श किया हुआ, साइरेगं - कुछ अधिक, वेसूण- कुछ कम, फुलइ – स्पर्श करता है ।
भावार्थ - ६८ प्रश्न - हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा कहा गया
है ?
६८ उत्तर - हे गौतम! धर्मास्तिकाय लोक रूप है, लोक मात्र है, लोक प्रमाण है, लोक स्पृष्ट है और लोक को स्पर्श करके रहा हुआ है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के विषय में भी जानना चाहिए। इन पाँचों के विषय में एक समान अभिलाप (पाठ) है । ६९ प्रश्न - हे भगवन् ! अधोलोक, धर्मास्तिकाय के कितने भाग को स्पर्श करता है ?
६९ उत्तर - हे गौतम! अधोलोक, धर्मास्तिकाय के आधे से कुछ अधिक भाग को स्पर्श करता है ।
७० प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यग्लोक, धर्मास्तिकाय के कितने भाग को स्पर्श करता है ?
.७० उत्तर - हे गौतम! तिर्यग्लोक, धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को
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