Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 548
________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १० धर्मास्तिकायादि की स्पर्शना ५२९ - स्पर्श करता है। - ७१ प्रश्न-हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोक, धर्मास्तिकाय के कितने भाग को स्पर्श करता है ? ७१ उत्तर-हे गौतम ! ऊर्ध्वलोक, धर्मास्तिकाय के देशोन अर्ध भाग को स्पर्श करता है। विवेचन-धर्मास्तिकाय के परिमाण का निरूपण करते हुए कहा गया है किधर्मास्तिकाय, लोक जितना बड़ा है अर्थात् लोकपरिमाण है। लोक के जितने प्रदेश हैं उतने ही धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं । वे सब प्रदेश लोकाकाश के साथ स्पृष्ट हैं, तथा धर्मास्तिकायादि अपने समस्त प्रदेशों द्वारा लोक को स्पर्श करके रहे. हुए हैं। धर्मास्तिकाय, सम्पूर्ण लोकव्यापी है और अधोलोक का परिमाण सात रज्जु से कुछ अधिक है । इसलिए अधोलोक धर्मास्तिकाय के आधे से कुछ अधिक भाग को स्पर्श करता है तिर्यग्लोक का परिमाण अठारह सौ योजन है और धर्मास्तिकाय का परिमाण असंख्यात योजन का है । इसलिए तिर्यग् लोक, धर्मास्तिकाय के असंख्यात भाग को स्पर्श करता है । ऊर्ध्वलोक, देशोन सात · रज्जु परिमाण है और धर्मास्तिकाय चौदह रज्जु परिमाण है। इसलिए ऊर्ध्वलोक, धर्मास्तिकाय के देशोन आधे भाग को स्पर्श करता है। . ७२ प्रश्न-इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेजइभाई फुसइ, असंखेजहभागं फुसइ, संखेजे भागे फुसइ, असंखेजे भागे फुसइ, सव्वं फुसइ ? ___७२ उत्तर-गोयमा ! णो संखेजइभागं फुसइ, असंखेजहभागं फुसइ, णो संखेने, णो असंखेजे, णो सव्वं फुसइ । ... ७३ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही धम्मथिकायस्स पुच्छा-किं संखेजइभागं फुसइ ? । ७३ उत्तर-जहा रयणप्पभा तहा घणोदही, घणवाय-तणु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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