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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ गरम पानी का कुण्ड
को वन्दना नमस्कार करते हैं।
विवेचन - पहले प्रकरण में साधु सेवा का फल बतलाया गया है, किन्तु वह फल जैसे तैसे हर किसी नामधारी साधुओं की सेवा से प्राप्त नहीं होता है, अपितु तथारूप अर्थात् शुद्ध चारित्र का पालन करने वाले उत्तम साधुओं की सेवा से ही वह फल प्राप्त होता है, क्योंकि वे सत्यवादी होते हैं, बाकी नामधारी साधु असत्यवादी होते हैं । इस प्रकरण में कितनेक असत्यवादी अन्यतीथिक साधुओं का वर्णन किया गया है।
__ अन्यतीर्थिकों का कथन है कि-राजगृह नगर के बाहर वैभार पर्वत के नीचे अनेक योजन की लम्बाई चौड़ाई वाला एक द्रह-कुण्ड है । उसमें अनेक मेघ संस्वेदित होते हैं अर्थात् गिरने की तैयारी में होते हैं, सम्मूच्छित होते हैं अर्थात् गिरते हैं। वह कुण्ड उदार-बहुत विस्तार वाला है। तदुपरान्त अर्थात् उसके भर जाने पर उसमें से गरम गरम पानी सदा झरता रहता है।
इस बात की सत्यता पूछने पर गौतम स्वामी को श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया कि-हे गौतम ! अन्यतीथिकों का उपर्युक्त कथन असत्य है, क्योंकि वे विभंगज्ञानी होने से उनका वचन सर्वज्ञ के वचन से प्रायः विपरीत होता है । अतः इन कारणों से उनका उपर्युक्त कथन असत्य है । उस झरने का नाम 'महातपोपतीर प्रभव' है अर्थात् महान् आतप-उष्णता वाले प्रदेश के पास जिसका प्रभव-उत्पत्ति हो, वह 'महातपोपतीर प्रभव' कहलाता है । वह वैभार पर्वत के नीचे नहीं है, किन्तु पास में है। उसमें उष्णयोनिक जीव और पुद्गल उत्पन्न होते और नष्ट होते रहते हैं । उस झरने की लम्बाई चौड़ाई पांच सौ धनुष है। उसमें से सदा परिमित गरम पानी झरता रहता है। यह 'महातपोपतीर प्रभव' झरना है और यह 'मातपोपतीरप्रभव' झरने का अर्थ है। -
भगवान् के वचनों को स्वीकार करते हुए गौतम स्वामी ने कहा-हे भगवन् ! जैसा आप फरमाते हैं, वह यथार्थ हैं । ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने भगवान् को वन्दना नमस्कार किया और फिर वे तप संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं।
॥ दूसरे शतक का पांचवां उद्देशक समाप्त ॥
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