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भगवती सूत्र-श. २ उ. १० जीव का स्वरूप
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६३ उत्तर-हंता गोयमा ! जीवे णं जाव उवदंसेतीति वत्तव्वं सिया।
६४ प्रश्न-से केणटेणं जाव-वत्तव्वं सिया ?
६४ उत्तर-गोयमा ! जीवे णं अणंताणं आभिणिबोहियणाणपजवाणं एवं सुयणाणपजवाणं ओहिणाणपजवाणं मणपजवणाणपजवाणं केवलणाणपजवाणं मइअण्णाणपजवाणं सुयअण्णाणपजवाणं विभंगण्णाणपजवाणं चक्खुदंसणपजवाणं अचक्खुदंसणपजवाणं ओहिदंसणपजवाणं केवलदसणपजवाणं उवओगं गच्छइ, उवओगलक्खणे णं जीवे, से एएणटेणं एवं वुच्चइ गोयमा ! जीवे णं सउट्ठाणे, जाव वत्तव्वं सिया।
विशेष शब्दों के अर्थ-उवदंसेति-दिखलाता है, आयभावेणं-आत्मभाव से।
भावार्थ-६३ प्रश्न-हे भगवन् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम वाला जीव, आत्मभाव से जीवत्व को दिखलाता है, क्या ऐसा कहना चाहिए ?
६३ उत्तर-हाँ, गौतम ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम वाला जीव, आत्मभाव से जीवत्व को दिखलाता है , प्रकाशित करता है, ऐसा कहना चाहिए।
६४ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है। - ६४ उत्तर-हे गौतम ! जीव, आमिनिबोधिक ज्ञान के अनन्त पर्याय, श्रुतज्ञान के अनन्त पर्याय, अवधिज्ञान के अनन्त पर्याय, मनःपर्यय ज्ञान के अनन्त पर्याय, केवलज्ञान के अनन्त पर्याय, मतिअज्ञान के अनन्त पर्याय, श्रुतअज्ञान के अनंत पर्याय, विभंगज्ञान (अवधिअज्ञान) के अनंत पर्याय, चक्षुदर्शन के अनंत पर्याय
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