Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 543
________________ ५२४ भगवती सूत्र - श. २ उ. १० आकाश के भेद काल, पुच्छा-पूछना = प्रश्न, तह चेव-वैसे ही, संजुत्ते- संयुक्त । भावार्थ - ६५ प्रश्न - हे भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? ६५ उत्तर - हे गौतम ! आकाश के दो भेद हैं । यथा - लोकाकाश और अलोकाकाश । ६६ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या लोकाकाश में जीव हैं ? जीव के देश हैं ? जीव के प्रदेश हैं ? क्या अजीव हैं ? अजीव के देश हैं ? अजीव के प्रदेश हैं ? ६६ उत्तर - हे गौतम! लोकाकाश में जीव भी हैं, जीव के देश भीं हैं, जीव के प्रदेश भी हैं । अजीव भी हैं, अजीव के देश भी हैं, अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव हैं, वे नियमा ( निश्चित रूप से) एकेन्द्रिय हैं, बेइन्द्रिय हैं, तेइन्द्रिय हैं, चौइन्द्रिय हैं, पञ्चेन्द्रिय हैं और अनिन्द्रिय हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमा एकेन्द्रिय के देश हैं यावत् अनिन्द्रिय के देश । जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमा एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं यावत् अनिन्द्रिय के प्रदेश हैं । जो अजीव हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-रूपी और अरूपी । जो रूपी हैं, उसके चार भेद कहे गये हैं । यथा - स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु- पुद्गल । जो अरुपी हैं, उसके पाँच भेद कहे गये हैं। यथा-धर्मास्तिकाय है, धर्मास्तिकाय का देश नहीं, धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं । अधर्मास्तिकाय है, अधर्मास्तिकाय का देश नहीं, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय है । क्या अलोकाकाश में जीव हैं ? इत्यादि पहले ६७ प्रश्न - हे भगवन् ! की तरह प्रश्न ? ६७ उत्तर - हे गौतम ! अलोकाकाश में जीव नहीं हैं यावत् अजीव के प्रवेश भी नहीं हैं। वह एक अजीव द्रव्य देश है, अगुरुलघु है, तथा अनन्त अगुरुलघु गुणों से संयुक्त है और अनन्त भाग कम सर्व आकाश रूप है । विवेचन - पहले के प्रकरण में जीव के सम्बन्ध में वर्णन किया गया था । जीव का आधार आकाश है । इसलिए अब आकाश के सम्बन्ध में वर्णन किया जाता 1 आकाश के दो भेद हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश । जिस क्षेत्र में धर्मास्तिकाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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