Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 538
________________ भगवती सूत्र श. उ. १० धर्मास्तिकाय विषयक प्रश्नोत्तर वाला अव्यय ( निपात) है । इसलिए 'अस्तिकाय' का यह अर्थ हुआ कि जो प्रदेशों का समूह भूतकाल में था, वर्तमानकाल में है और भविष्यत्काल में रहेगा, उसे 'अस्तिकाय ' कहते हैं । ५१९ अस्तिकाय पांच हैं- १ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय, ३ आकाशास्तिकाय, ४ जीवास्तिकाय और ५ पुद्गलास्तिकाय । यहां पर यह शंका हो सकती है कि इन पाँच अस्तिकायों का यही क्रम क्यों रखा गया है ? इसका समाधान इस प्रकार है- 'धर्मास्तिकाय' के प्रारम्भ में 'धर्म' शब्द आया है । 'धर्म' शब्द मंगल सूचक है, इसलिए सब तत्त्वों में पहले 'धर्मास्तिकाय' कहा गया है । 'धर्मास्तिकाय' का विपरीत 'अधर्मास्तिकाय' है । इसलिए 'धर्मास्तिकाय' के बाद 'अधर्मास्तिकाय' कहा गया है । धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय, इन दोनों के लिए 'आकाशास्तिकाय' आधार रूप है, इसलिए इन दोनों के बाद 'आकाशास्तिकाय' कहा गया है । आकाश, अनन्त और अमूर्त है तथा जीव भी अनन्त और अमूर्त है । इस प्रकार इन दोनों तत्त्वों की समानता होने से आकाशास्तिकाय के बाद चौथा तत्त्व 'जीवास्तिकाय' कहा गया है। जीव तत्त्व के उपयोग में 'पुद्गल तत्त्व' आता है । इसलिए 'जीवास्तिकाय' के बाद 'पुद्गलास्तिकाय' कहा गया है । Jain Education International धर्मास्तिकाय आदि चार द्रव्य वर्णादि रहित हैं, इसीलिए वे अरूपी, अमूर्त हैं । किंतु वे निःस्वभाव नहीं हैं । धर्मास्तिकायादि द्रव्यतः शाश्वत हैं, प्रदेशों की अपेक्षा अवस्थित हैं । धर्मास्तिकाय आदि प्रत्येक 'लोक- द्रव्य' हैं अर्थात् पञ्चास्तिकाय रूप लोक के अंशरूप द्रव्य हैं । गुण ( कार्य ) की अपेक्षा धर्मास्तिकाय गति ( गमन) गुण वाला है । तात्पर्य यह है कि जैसे पानी, मछली को चलने में सहायता देता है, उसी प्रकार गति क्रिया में परिणत हुए जीव और पुद्गलों को धर्मास्तिकाय सहायता देता है । अधर्मास्तिकाय स्थिति गुण वाला है अर्थात् स्थिति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों की स्थिति में सहायक होता है । जैसे-विश्राम चाहने वाले थके हुए पथिक के ठहरने में छायादार वृक्ष सहायक होता है । आकाशास्तिकाय अवगाहन गुण वाला है अर्थात् जीवादि द्रव्यों को रहने के लिए अवकाश देता है । जैसे - बदरीफलों (बेर) को रखने के लिए कुण्डा आधारभूत है, इसी तरह आकाश तत्त्व, जीवादि को अवकाश देता है । इसलिए वह अवगाहना गुण वाला है । जीव तत्त्व, उपयोग गुण वाला है । पुद्गलास्तिकाय, ग्रहणगुण वाला है, क्योंकि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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