Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 537
________________ ५१८ भगवती सूत्र-श. २ उ. १. धर्मास्तिकाय विषयक प्रश्नोत्तर ६० उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं अर्थात् एक प्रदेशोन धर्मास्तिकाय को धर्मास्तिकाय नहीं कहते हैं। ६१ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है कि धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को यावत् जहाँ तक एक भी प्रदेश कम हो वहां तक धर्मास्तिकाय नहीं कहना चाहिए ? ६१ उत्तर-हे गौतम ! यह बतलाओ कि चक्र का खण्ड (भाग-टुकड़ा) 'चक्र' कहलाता है, या सम्पूर्ण चक्र, चक्र कहलाता है ? हे भगवन् ! चक्र का खण्ड, चक्र नहीं कहलाता है, किन्तु सम्पूर्ण चक्र, चक्र कहलाता है। इसी प्रकार छत्र, चर्म, दण्ड, वस्त्र, शस्त्र और मोदक के विषय में भी जानना चाहिए अर्थात् ये सब छत्रादि सम्पूर्ण हों, तो छत्रादि कहलाते हैं, किन्तु इनका खण्ड छत्रादि नहीं कहलाते हैं, इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश यावत् जबतक एक प्रदेश भी कम हो तबतक उसे धर्मास्तिकाय नहीं कहते हैं।' ६२ प्रश्न-तो फिर हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय किसे कहते हैं ? ६२ उत्तर-हे गौतम ! धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश हैं, वे सब कृत्स्न (पूरे), प्रतिपूर्ण, निरवशेष (जिन में से एक भी बाकी नहीं बचा हो), एकग्रहण-गृहीत अर्थात् एक शब्द से कहने योग्य हों तब उन असंख्यात प्रदेशों को 'धर्मास्तिकाय' कहते हैं। इसी तरह अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवा. स्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के विषय में भी जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, इन तीन द्रव्यों के अनन्त प्रदेश कहने चाहिए । बाकी सारा वर्णन पहले की तरह समझना चाहिये। विवेचन-नौवें उद्देशक में क्षेत्र के विषय में कथन किया गया है । वह क्षेत्र अस्तिकाय के एक देश रूप है, इसलिए दसवें उद्देशक में 'अस्तिकाय' का वर्णन किया गया है। अस्तिकाय-'अस्ति' का अर्थ है 'प्रदेश' और 'काय' का अर्थ है-'समूह' । अर्थात् अस्तिकाय का अर्थ है-प्रदेशों का समूह। अथवा 'अस्ति' यह तीन काल को सूचित करने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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