Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 534
________________ भगवती सूत्र-- श. २ उ. १० पुद्गलास्तिकाय का वर्णन जीवास्तिकाय के पांच भेद कहे गये हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा । द्रव्य की अपेक्षा जीवास्तिकाय अनन्त जीव द्रव्यरूप है। क्षेत्र की अपेक्षा लोक प्रमाण है । काल को अपेक्षा वह कभी नहीं था-ऐसा नहीं, यावत् वह नित्य है । । भाव की अपेक्षा जीवास्तिकाकाय में वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं और स्पर्श नहीं है। गुण की अपेक्षा उपयोग गुण वाला है। ५७ प्रश्न-पोग्गलत्थिकाए णं भंते ! कतिवणे, कतिगंध-रसफासे ? ५७ उत्तर-गोयमा ! पंचवण्णे, पंचरसे, दुगंधे, अट्ठफासे, रूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए, लोगदब्वे । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते तं जहाः-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ । दवओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाई, खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते, कालओ न कयाइ न आसी जाव-णिच्चे, भावओ वण्णमंते गंध-रस-फासमंते । गुणओ गहणगुणे। - विशेष शब्दों के अर्थ-गहणगुणे- ग्रहण गुण । भावार्थ-५७ प्रश्न-हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? . ५७ उत्तर-हे गौतम ! पुद्गलास्तिकाय में पांच वर्ण है, पांच रस हैं, दो गन्ध हैं, आठ स्पर्श हैं। वह रूपी है, अजीव है, शाश्वत हैं और अवस्थित लोक द्रव्य है । संक्षेप में उसके पांच भेद कहे गये हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा । द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्यरूप है। क्षेत्र की अपेक्षा लोक प्रमाण है । काल की अपेक्षा वह कभी नहीं था-ऐसा नहीं यावत् नित्य है । भाव की अपेक्षा वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला है । गुण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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