Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 532
________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १. पंचास्तिकाय वर्णन ५१३ रसे, कतिकासे ? - ५४ उत्तर-गोयमा ! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे, अरूवी अजीवे, सासए, अवढिए लोगदव्वे । ५५-से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाः-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं धम्मत्थिकाए एगे दब्बे, खेतओ णं लोगप्पमाणमेत्ते, कालओ न कयाइ न आसि न कयाइ नत्थि जाव-णिच्चे, भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे, गुणओ. गमणगुणे । अहम्मत्थिकाए वि एवं चेव, नवरंगुणओं ठाणगुणे । आगासत्थिकाए वि एवं चेव, नवरं-खेत्तओ णं आगासत्थिकाए लोयालोयप्पमाणमेत्ते, अणंते चेव जाव-गुमओ अवगाहणागुणे। विशेष शब्दों के अर्थ-समासओ-संक्षेप से, अबगाहणागुणे-अवगाहन गुण वाला। • भावार्थ-५३ प्रश्न-हे भगवन् ! अस्तिकाय कितने कहे गये हैं ? . ५३ उत्तर-हे गौतम ! अस्तिकाय पाँच कहे गये हैं, यथा--धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय । ५४ प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने . रस और कितने स्पर्श है ? .... ५४ उत्तर-हे गौतम! धर्मास्तिकाय में वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श नहीं है अर्थात् धर्मास्तिकाय अरूपी है, अजीव है, शाश्वत है। यह अवस्थित लोक द्रव्य है। ५५-संक्षेप से धर्मास्तिकाय पांच प्रकार का कहा गया है-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण से। द्रव्य की अपेक्षा धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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