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1-श. २ उ. ८ चमरचंचा राजधानी
सत्ताणउ य जोयणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं सवप्पमाणं वेमाणियप्पमाणस्स अधं नेयव्वं । सभा सुहम्मा, उत्तरपुरस्थिमेणं जिणघरं, ततोववायसभा, हरओ, अभिसेय, अलंकारो जहा विजयस्स।
उववाओ संकप्पो अभिसेय विभूसणा य ववसाओ। अवणिय सिद्धायण गमो वि य चमर परिवार इडूढत्तं ॥
॥ अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो॥
विशेष शब्दों के अर्थ-पागारो-प्राकार = किला, कविसीसगा-कंगुरे, हरओ-ह्रद, अभिसेय-अभिषेक करने का स्थान ।
भावार्थ-उस राजधानी का आयाम और विष्कम्भ (लम्बाई और चौडाई) एक लाख योजन है । वह राजधाती जम्बूद्वीप जितनी है । उसका किला १५० योजन ऊंचा है। उस किले के मूल का विष्कम्म पचास योजन है। उसके ऊपर के भाग का विष्कम्भ साढे तेरह योजन है । उसके कपिशीर्षक (कंगरों) की लंबाई आधा योजन हैं और विष्कम्भ एक कोस है । कपिशीर्षक (कंगुरों) को ऊंचाई आधे योजन से कुछ कम है । उसके एक एक बाहु में पांच सौ पांच सौ दरवाजे हैं। उनकी ऊंचाई २५० योजन है। विष्कम्भ ऊंचाई से आधा है अर्थात् १२५ योजन है । उवरियल (घर के पीठबन्ध जैसा भाग) का आयाम और विष्कम्भ (लम्बाई और चौडाई) सोलह हजार योजन है । उसका परिक्षेप (घेरा) ५०५९७ योजन से कुछ विशेषोन है । यहाँ सर्व प्रमाण वैमानिक के प्रमाण से आधा समझना चाहिए । सुधर्मा सभा, उत्तर पूर्व में जिनगृह, उसके बाद उपपात समा, हैद, अभिषेक और अलङ्कार, यह सारा वर्णन विजय की तरह कहना
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