Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 529
________________ ५१० चाहिए । भगवती सूत्र - श. २ उ. ८ चमरवंचा राजधानी गाथा का अर्थ इस प्रकार है उपपात, संकल्प, अभिषेक, विभूषणा, व्यवसाय, अर्चनिका और सिद्धायतन सम्बन्धी गम तथा चमर का परिवार और उसकी ऋद्धिसम्पन्नता । विवेचन - चमरेन्द्र को चमरचञ्चा राजधानी में जो किला, महल और सभा आदि हैं उनकी ऊंचाई आदि का परिमाण सौधर्म देवलोक के किला, महल और सभा आदि के परिमाण से आधा परिमाण है । वह इस प्रकार है; सौधर्म देवलोक में रहने वाले देवों के विमानों के आसपास रहे हुए किले की योजन ऊंचा है। मूल महल के परिवार योजन है । उन चार महलों में से प्रत्येक ऊंचाई तीन सौ योजन है। मूल महल पांच सौ रूप दूसरे चार महल हैं. उनकी ऊंचाई ढाई सौ महल के आसपास दूसरे चार चार महल और हैं, उनकी ऊंचाई सवा सौ योजन है । उन चार महलों में से प्रत्येक महल के आसपास फिर चार चार महल हैं, उनकी उंचाई ६२ ।। योजन है । इसी प्रकार उन चार महलों में से प्रत्येक महल के आसपास फिर चार चार महल हैं, उनकी ऊंचाई ३१ योजन है । यहाँ चमरचञ्चा राजधानी में किले की ऊंचाई १५० योजन है । मूल महल की ऊंचाई २५० योजन है और क्रमशः उनके आसपास रहे हुए महलों की ऊंचाई क्रमश: आधी आधी होती गई है । इस प्रकार अन्तिम महल की ऊंचाई पन्द्रह योजन और एक योजन का पाँच अष्टांश है । चार परिपाटियों में कुल ३४१ प्रासाद हैं । इन प्रासादों से उत्तरपूर्वईशान कोण में सुधर्मा सभा, सिद्धायतन, उपपात सभा, ह्रद, अभिषेक सभा, अलङ्कार सभा और व्यवसाय सभा है। इन सब का परिमाण सौधर्म देवलोक के देवों की सभा आदि के परिमाण से आधा है । अतः इनकी ऊंचाई ३६ योजन है, लम्बाई पचास योजन है और चौड़ाई पचीस योजन हैं । वाभिगम सूत्र में विजयदेव की सभा आदि का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ चमरेन्द्र के लिए उपपोत सभा पर्यन्त वर्णन कहना चाहिए । उपपात सभा में तत्काल उत्पन्न हुए इन्द्र को ऐसा विचार होता है कि मुझे क्या कार्य करना है । मेरा क्या जीताचार है ? फिर सामानिक देवों द्वारा बड़ी ऋद्धि से अभिषेक सभा में उसका अभिषेक किया जाता है । अलङ्कार सभा में वस्त्राभूषणों से अलङ्कार किया जाता है । व्यवसाय सभा में पुस्तक का वाचन किया जाता हैं। सिद्धायतन में मूर्ति का पूजन किया जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org


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