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भगवती सूत्र - श. १ उ. ९ नैरयिक का गुरुत्व लघुत्व ....
व्यवहार में भारी वस्तु वह है जो पानी पर रखने से डूब जाती है, जैसे-पत्थर आदि । हलकी वह है जो ऊर्ध्वगामी हो अर्थात् ऊपर की ओर जाय, जैसे-धूमा। तिरछी जाने वाली वस्तु गुरुलघु कहलाती है, जैसे वायु । जो इधर उधर नहीं जाता है वह अगुरुलघु है, जैसे-आकाश । निश्चय नय की अपेक्षा कोई भी वस्तु एकान्त भारी या एकान्त हलकी नहीं है । जैसा कि कहा है--
पिच्छयो सम्वगुरु सब्बलहुं वा विज्जए बवं । ववहारओ उ जुज्जा वायरखधेसु ण अण्णेसु ॥१॥ अगुल्लाहू पउफासा अविषव्या य होति णायग्या।
सेसाओ अकासा गुल्लाहुया णिच्छयणस्स ॥२॥ . अर्थात-निश्चय नय की अपेक्षा से कोई भी द्रव्य एकान्त भारी, या एकांत हलका नहीं है । व्यवहार नय की अपेक्षा बादर स्कन्धों में भारीपन या हलकापन होता है, अन्य किसी स्कन्ध में नहीं।
जो द्रव्य चार स्पर्श वाले या अरूपी होते हैं, वे सब अगुरुलघु होते है और माठ स्पर्श वाले जितने द्रव्य है, ये सब गुरुलषु होते है। .. वास्तव में हलफापन और भारीपन, आदि सब सापेक्ष है अर्थात् एक को पूसरे की अपेक्षा रहती है । अपेक्षा से ही हलका और भारी होता है।
२८५ प्रभ-णेरहया ण भैते ! किं गल्या जाप-अगल्पलहुया ?
२८५ उत्तर-गोयमा ! णो गरुया, णो लहुया, गल्पलहुपा पि, .. अगरयलहुया पि।
२८६ प्रश्न-से फेणडेणं १ .
२८६ उत्तर-गोयमा ! विउब्धिय-तेयाई पडुच्च णो गल्या, णो लहुया, गरुयलहुया; णो अगस्यलहुया । जीवं च, कम्मं च पडुच्च णो गरुया, णो लहुया, णो गरुयलहुया, अगरुयलहुया । से
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