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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ स्थविर वन्दन
गृहदेवता का पूजन करना-यह अर्थ सर्वथा असंगत और आगम विरुद्ध है।
'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता' शब्द का अर्थ इस प्रकार है-दुःस्वप्नादि के दुष्फल के निवारणार्थ जिन्होंने कौतुक और मंगल किये थे वे ही प्रायश्चित्त रूप थे। दूसरे आचार्यों का मत है कि. 'पायच्छित' का अर्थ है-'पादच्छुप्त' अर्थात् नेत्रों के रोग निवारण के लिए उन्होंने पैरों पर अमुक प्रकार के तेल का विलेपन किया था और उन्होंने मष तिलक रूप कौतुक तथा सरसों दही चावल दूर्वांकुर (दूब नामक घास) रूप मंगल किया था । मभा में जाने योग्य उत्तम वस्त्रों को उत्तम रीति से पहना था।
मेलायित्ता पायविहारचारेणं तुंगियाए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुष्फवईए चेहए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति, तं जहाः-सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए, अचित्ताणं दव्याणं अविउसरणयाए, एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं, चक्खुप्फासं अंजलिप्पग्गहेणं, मणसो एगत्तीकरणेणं जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करित्ता जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति। तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए चाउज्जामं धम्म परिकहति । जहा केसिसामिस्स, जाव समणोवासियत्ताए आणाए आराहए भांति जाव-धम्मो कहिओ।
_ विशेष शब्दों के अर्थ-निग्गच्छंति-चलते हैं, अभिगमेणं-समीप आते हैं, विउसरणयाए-त्यागकर दूर करके, एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं-एक शाटिक अर्थात् एक वस्त्र का उत्तरासंग किया, चक्खुप्फासं-दृष्टि में आने पर, अंजलिप्पग्गहेणं-हाथ जोड़ कर ।
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