Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 499
________________ ४८० भगवती सूत्र - श. २ उ. ५ तुंगिका के श्रावकों के प्रश्नोत्तर ३५ उत्तर-तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासीः संजमे णं अज्जो ! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले । तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी:-जइ णं भंते ! संजमे अणण्हयफले तवे वोदाणफले ३६ प्रश्न-किंपत्तियं णं भंते ! देवा देवलोएसु उववज्जति ? - ३६ उत्तर-तत्थ णं कालियपुत्ते नाम थेरे ते समणोवासए एवं वयासीः-पुव्वतवेणं अजो ! देवा देवलोएसु उववजंति । तत्थ णं मेहिले नाम थेरे ते समणोवासए एवं वयासीः-पुव्वसंजमेणं अजो ! देवा देवलोएसु उववति । तत्थ णं आणंदरविखए नाम थेरे ते समणोवासए एवं वयासी:-कम्मियाए अजो ! देवा देवलोएसु उववति । तत्थ णं कासवे नाम थेरे ते समणोवासए एवं वयासीःसंगियाए अजो ! देवा देवलोएसु उववति । पुव्वतवेणं, पुव्वसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अनो! देवा देवलोएसु उववजंति । सच्चे णं एस अटे, णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए । विशेष शब्दों के अर्थ-अणण्हयफले-अनाव होने रूप फल, वोदाणफले-व्यवदान अर्थात् कर्मों को काटना या कर्म रूपी कीचड़ से मलीन आत्मा को शुद्ध करना, जइ-यदि, किंपत्तियं-किंप्रत्यय = किस कारण से, कम्मियाए-कर्मों से अर्थात् बाकी रहे हुए कर्मों के कारण, संगियाए-संगपन अर्थात् सराग संयम से, आयभाववत्तव्वयाए-आत्मभाववक्तव्य अर्थात् अपने अभिमान से। भावार्थ-स्थविर भगवन्तों के पास धर्मोपदेश सुनकर एवं हृदय में धारण करके वे श्रमणोपासक बडे हर्षित हुए, सन्तुष्ट हुए यावत् विकसित हृदय वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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