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भगवती सूत्र--श. २ उ. ५ तुंगिका के श्रावकों के प्रश्नोत्तर
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हुए। इसके बाद उन श्रमणोपासकों ने स्थविर भगवन्तों को तीन बार प्रदक्षिणा करके मन, वचन और काया रूप तीन प्रकार की पर्युपासना से पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा-- ___३५ प्रश्न-हे भगवन् ! संयम का क्या फल है ? तप का क्या फल है ?
३५ उत्तर-उन स्थविर भगवन्तों ने इस प्रकार उत्तर दिया कि-हे आर्यों ! संयम का फल अनाश्रय (आश्रव रहित-संवर) है और तप 'का फल व्यवदान (कर्मों को काटना एवं कर्म रूपी कीचड़ से मलीन आत्मा को शुद्ध करना) है।
_३६ प्रश्न-स्थविर भगवन्तों के उत्तर को सुन कर श्रमणोपासकों ने इस प्रकार पूछा कि-हे भगवन् ! यदि संयम का फल अनाश्रवपन है और तप . का फल व्यवदान है, तो देव, देवलोक में किस कारण से उत्पन्न होते हैं ? . ३६ उत्तर-श्रमणोपासकों के प्रश्न को सुन कर उन स्थविर भगवन्तों में से कालिकयुत्र नामक स्थविर ने इस प्रकार उत्तर दिया-हे आर्यों ! पूर्व तप के कारण देवता, देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
उनमें से मेहिल (मेधिल) नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा कि-हे आर्यो ! पूर्व संयम के कारण देवता देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
.. उनमें से आनन्दरक्षित नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा कि-हे आर्यो ! कमिता के कारण अर्थात् पूर्वकर्मों के कारण देवता, देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
. उनमें से काश्यप नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा कि-हे. आर्यों ! संगोपन के कारण अर्थात् द्रव्यादि में रागभाव के कारण देवता, देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
. इस प्रकार हे आर्यो ! पूर्व तप से, संयम से, कर्मों से और सराग संयम से देवता, देवलोक में उत्पन्न होते हैं। हे आर्यों ! यह बात सत्य है, इसलिए कही है, किन्तु अपने अभिमान.के कारण हमने यह बात नहीं कही है। . विवेचन--श्रमणोपासकों के प्रश्न के उत्तर में स्थविर भगवन्तों ने संयम का फल
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