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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ तुंगिका के श्रावकों के प्रश्नोतर
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वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं भगवंताणं अंतियाओ पुष्फवतियाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। तए णं ते थेरा अण्णया कयाई तुंगियाओ नयरीओ पुष्फवतियाओ चेइयाओ पडिनिग्गच्छंति, बहिया जणवयविहार विहरति ।
____ विशेष शब्दों के अर्थ-वागरणाई-स्पष्टीकरण करने योग्य, पसिणाइं--प्रश्न. उवादियंति-ग्रहण करते हैं, अंतियाओ-समीप से, बहिया-बाहर ।
... भावार्थ-स्थविर भगवन्तों के द्वारा दिये हुए उत्तरों को सुनकर वे श्रमणोपासक बड़े हर्षित हुए, सन्तुष्ट हुए। फिर स्थविर भगवन्तों को वन्दना नमस्कार करके और दूसरे प्रश्न पूछे एवं उनके अर्थों को ग्रहण किया। फिर तीन बार प्रदक्षिणा करके उन स्थविर भगवन्तों को वन्दना नमस्कार किया। फिर स्थविर भगवन्तों के पास से एवं उस पुष्पवती उद्यान से निकल कर अपने अपने स्थान पर गये।
इधर वे स्थविर भगवन्त भी किसी एक दिन उस तुंगिया नगरी के पुष्पवती उद्यान से निकलकर बाहर जनपद में विचरने लगे।
- विवेचन-यह वर्णन तुंगिया के श्रावकों की धर्मरुचि एवं तत्त्वरुचि को स्पष्ट करता है। वे सम्पत्तिशाली होते हुए भी धर्मप्रेम उनके रगरग में भरा हुआ था । उन्होंने स्थविर भगवंत का उपदेश सुनकर उसे हृदयंगम करने के लिए प्रश्न पूछे और निःशंक बने । .. वे भौतिक सम्पत्ति में दूसरे मनुष्यों से अजेय थे, तो धर्म के विषय में मनुष्यों से ही नहीं, देवों से भी अजेय थे। उनकी आत्मा पर भौतिक सम्पत्ति का प्रभाव उतना नहीं था, जितना धार्मिक श्रद्धा का था । पूर्व के सूत्र पाठ से उनके गृहस्थ जीवन की भव्यता एवं धार्मिक श्रमणोपासकपन की विशेषता का स्पष्ट बोध होता है।
ते णं काले णं ते णं समए णं रायगिहे नामं नगरे । जाव
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