Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 509
________________ ४९० भगवती सूत्र - श. २ उ. ५ तुंगिका-गौतमस्वामी के प्रश्नोत्तर जाव-सच्चे णं एसमटे णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए, अहं पि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि भासेमि पनवेमि परूवेमि-पुव्वतवेणं देवा देवलोएसु उववजंति, पुव्वसंजमेणं देवा देवलोएसु उववजंति, कम्मियाए देवा देवलोएसु उववजंति, संगियाए देवा देवलोएसु उववजंति, पुव्वतवेणं, पुव्वसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अनो! देवा देवलोएसु उववजंति, सच्चे णं एसमटे णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए। विशेष शब्दों के अर्थ-पभू-समर्थ, समिया-सम्यक्त्व विषयक कथन करने में समर्थ या अभ्यास वाले, उदाहु-अथवा, आउज्जिया-आयोगिक = उपयोग वाले, पलिउज्जियापरियोगिक = सर्व प्रकार के ज्ञान युक्त, अप्पभू-असमर्थ । भावार्थ-गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीरस्वामी से पूछा किहे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में समर्थ हैं, या असमर्थ हैं ? हे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में अभ्यासी (अभ्यास वाले) हैं, या अनभ्यासी हैं ? हे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में उपयोग वाले हैं, या उपयोग वाले नहीं हैं ? हे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में विशेषज्ञानी हैं, या सामान्यज्ञानी हैं ? कि पूर्व तप, पूर्वसंयम, कमिपन और संगीपन, इन कारणों से देवता देवलोक में उत्पन्न होते हैं। ... श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कहा-हे गौतम ! वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में समर्थ है, किन्तु असमर्थ नहीं, अभ्यासी हैं अनभ्यासी नहीं, उपयोग वाले हैं, अनुपयोग वाले नहीं, विशेषज्ञानी हैं, सामान्य ज्ञानी नहीं। यह बात सच्ची है, इसलिए उन स्थविरों ने कही हैं, अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552