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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ गर्म पानी का कुण्ड .
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____३ विण्णाणे-श्रुतज्ञान से विज्ञान की प्राप्ति होती है अर्थात् हेय (त्यागने योग्य) और उपादेय (ग्रहण करने योग्य) पदार्थों का ज्ञान होता है।
४ पच्चक्खाणे (प्रत्याख्यान)-हेय और उपादेय का ज्ञान हो जाने पर पच्चक्खाण की प्राप्ति होती है अर्थात् जिसे विशेषज्ञान हो जाता है वह पाप का प्रत्याख्यान कर
देता है।
५ संजमे (संयम)-प्रत्याख्यान से संयम की प्राप्ति होती है।
६ अणण्हए (अनाश्रव)-संयम से अनाश्रव (संवर) की प्राप्ति होती है अर्थात् संयम वाला जीव नवीन कर्मों के आगमन को रोकता है।
७ तवे (तप)-अनाश्रव के बाद अनशन आदि बारह प्रकार के तप की ओर प्रवृत्ति होती है।
८ वोदाणे (व्यवदान)-तप से पूर्वकृत कर्मों का नाश होता है । आत्मा में रहे हुए पूर्वकृत कर्मरूपी कचरे की शुद्धि हो जाती है ।
९ अकिरिय (अक्रिय)-इसके बाद आत्मा अक्रिय हो जाता है और मन, वचन और कायारूप योगों का निरोध हो जाता है ।
१. सिद्धि-योगों का निरोध कर लेने पर जीव की सिद्धि (मोक्ष) हो जाती है। . मिद्धि गति को प्राप्त करना ही जीव का अन्तिम प्रयोजन है।
राजगृह का गर्म पानी का कुंड
४७ प्रश्न-अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खति भासंति पन्नति, परूवेति-एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स बहिया वेभारस्स पव्वयस्स अहे एत्थ णं महं एगे हरए अघे (अप्पे) पण्णत्ते, अणेगाई जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, नाणादुमसंडमंडिउद्देसे, सस्सिरीए जाव-पडिरूवे । तत्थ णं बहवे उराला बलाहया संसेयंति संमुच्छति वासंति, तव्वहरिते य णं सया समियं उसिणे उसिणे आउकाए
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