Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 508
________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ तुंगिका-गीतमस्वामी के प्रश्नोनर ४८९ प्रकार प्रश्न पूछा कि-हे भगवन् ! संयम का क्या फल है और तप का क्या फल है ? (यहाँ सारा वर्णन पहले की तरह कहना चाहिए) यावत् यह बात सत्य है इसलिए कही है, किन्तु हमने अपने अभिमान के वश नहीं कही है । इत्यादि। विवेचन-राजगृह नगर में भिक्षा के लिये गये हुए गौतम स्वामी ने बहुत से लोगों के मुख से तुंगिका के श्रावकों के साथ पापित्य स्थविरों के हुए प्रश्नोत्तर की चर्चा सुनी। इससे उनके मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई और उन्होंने इस विषय में भगवान् से निवेदन किया । तं पभू णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए ? उदाहु अप्पभू ? समिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाई एयारूवाइं वागरणाई वागरित्तए ? उदाहु अस्समिया ? आउजिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाई वागरणाई वागरेत्तए ? उदाहु अणाउजिया ? पलिउजिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसि समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाई वागरेत्तए ? उदाहु अपलिउजिया ? पुव्वतवेणं अजो ! देवा देवलोएसु उववति । पुवसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अजो ! देवा देवलोएसु उववजंति, सच्चे णं एसमटे, णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए । पभू णं गोयमा ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाई वागरेत्तए, णो चेव णं अप्पभू । तह चेव णेयव्वं अविसेसियं जाव-पभूसमियं आजिय-पलिउजिया, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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