Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 505
________________ भगवती सूत्र - श. २ उ ५ तुंगिका - गौतमस्वामी को शंका भगवान् की आज्ञा हो जाने पर गौतम स्वामी भगवान् के पास से गुणशीलक चैत्य से निकले, निकल कर शारीरिक त्वरता ( शीघ्रता ) और मानसिक चपलता रहित एवं आकुलता व उत्सुकता रहित गौतम स्वामी युग ( धूसरा ) प्रमाण भूमि को देखते हुए ईर्यासमितिपूर्वक राजगृह नगर में आये, वहाँ ऊँच, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा की विधि के अनुसार भिक्षा लेने के लिए फिरने लगे । ४८६ विवेचन - मूलपाठ में 'भायणाई' शब्द दिया है और टीकाकार ने इसकी संस्कृत छाया 'भाजनानि' दिया है । इस प्रकार यह शब्द बहुवचनान्त हैं । इसलिये इससे तीन पात्र सिद्ध होते हैं - अर्थात् स्थविरकल्पी मुनियों को आहार पानी के लिये तीन पात्र रखना कल्पता है । ग्रन्थकार और कोई टीकाकार स्थविरकल्पी मुनियों को सिर्फ एक ही पात्र रखने का कल्प बताते हैं, और मात्रक रूप पात्र भी रखने का विधान आचार्यों ने पीछे से किया है ऐसा कहते हैं, किन्तु उनका यह कथन शास्त्र के इस मूलपाठ से विरुद्ध है । इसी प्रकरण में आगे 'भत्तपाणं पडिदंसेइ' पाठ है, जिसका अर्थ है कि - गौतम स्वामी जो आहार पानी लाये वह उन्होंने भगवान् को दिखलाया 1 यदि एक ही पात्र में आहार पानी होता, तो आहार से संसृष्ट ( खरड़ा हुआ) पात्र और हाथ आदि किससे साफ करते ? इससे भी स्पष्ट है कि पात्र एक नहीं था, किन्तु अधिक ( तीन ) थे । इसलिये एकान्त रूप से एक पात्र रखने का कल्प बताना शास्त्र विरुद्ध है । दशवेकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन के सकाय की यतना में मूलपाठ में 'उडगंसि' शब्द आया है जिसका अर्थ है - मात्रकरूप पात्र । अत: मात्रकरूप पात्र रखने का विधान शास्त्र में स्पष्ट है । अत: मात्रकरूप पात्र रखने का विधान आचार्यों ने पीछे से किया यह कथन भी शास्त्र विरुद्ध है । तए णं से भगवं गोयमे रायगिहे नगरे जाव अडमाणे बहुजणसद्द निसा मेह - एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुंगियाए नयरीए बहिया पुप्फवईए चेहए पासावचिज्जा थेरा भगवंतो समणोवासए हिं इमाई एयारूवाइं वागरणाई पुच्छिया : - " संजमे णं भंते ! किंफले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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