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" "भगवती सूत्र-श. १ उ. १० ऐयोपथिकी और साम्परायिकी क्रिया
जहाः-इरियावहियं च, संपराइयं च । जं समयं इरियावहियं पकरेइ तं समयं संपराइयं पकरेइ, जं समयं संपराइयं पकरेइ, तं समयं इरियावहियं पकरेह-इरियावहियाए पकरणयाए संपराइयं पकरेइ, संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पकरेइ । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ । तं जहाः-इरियावहियं च, संपराइयं च ।” से कहमेयं भंते ! एवं ?
. . ३२५ उत्तर-गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति, तं चेव जाव-जे ते एवं आहिंसु, मिच्छा ते एवं आहिंसु । अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि-एवं खलु एगे जीवे एगसमए एक्कं किरियं पकरेइ । परउत्थियवत्तव्यं णेयव्वं । ससमयवत्तव्वयाए यव्वं । जाव-इरियावहियं वा, संपराइयं वा।।
- विशेष शम्दों के अर्थ-हरियावहियं-ऐपिथिकी क्रिया, संपराइयं-साम्परायिकी क्रिया, परउत्थियवतम्ब-परतीर्थिकों की वक्तव्यता, ससमयवतव्वयाए-स्वसमय-स्वसिद्धान्त की वक्तव्यता।
भावार्थ-३२५ प्रश्न-हे भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते है यावत् प्ररूपणा करते हैं कि-एक जीव, एक समय में दो क्रियाएं करता है । वह इस प्रकार है-ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी । जिस समय जीव, ऐर्यापथिको क्रिया करता है, उस समय साम्परायिकी क्रिया करता है और जिस समय साम्परायिकी क्रिया करता है उस समय ऐर्यापथिको क्रिया करता है । साम्परायिकी क्रिया करने से ऐपिथिकी क्रिया करता है इत्यादि । इस प्रकार एक जीव, एक समय में दो क्रियाएँ करता है, एक ऐर्यापथिकी और दूसरी साम्परायिकी । हे भगवन् ! या यह इसी प्रकार है. ?
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