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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ मृतादी अनगार
इसलिए उसे 'सत्त्व' कहना चाहिए । वह तिक्त (तीखा), कडुआ, कषैला, खट्टा और मीठा इन रसों को जानता है, इसलिए उसे 'विज्ञ' कहना चाहिए। वह सुख दुःख को वेदता है-अनुभव करता है, इसलिए उसे 'वेद' कहना चाहिए। इसलिए हे गौतम ! पूर्वोक्त निर्ग्रन्थ का जीव 'प्राण यावत् वेद' कहलाता है।
विवेचन-पहले के प्रकरण में यह कहा गया है कि वायुकाय बारबार वायुकाय में उत्पन्न होती है । इसी प्रकार क्या किसी मुनि की भी संसार चक्र की अपेक्षा बारबार वहीं उत्पत्ति होती है ? इस बात को बतलाते हुए कहा गया है- . ...
. 'मडाई' शब्द की संस्कृत छाया 'मृतादी' होती है जिसका अर्थ है-'मृत' अर्थात् निर्जीव । 'अदी' अर्थात् 'खाने वाला' । तात्पर्य यह है कि-प्रासुक और एषणीय पदार्थ को खाने वाला निर्ग्रन्थ-साधु 'मडाई' कहलाता है । इसके विशेषण दिये गये हैं-'णो णिरुद्धभवे' अर्थात् जिसने आगामी. जन्म को रोका नहीं है-जो चरम शरीरी नहीं है । ‘णो णिरुद्धभवपवंचे' अर्थात् जिसने संसार के विस्तार को रोका नहीं है, अपितु जिसको संसार में अभी अनेक जन्म करने बाकी हैं । ‘णो पहीणसंसारे' जिसका चार गति में भ्रमण रूप संसार क्षीण नहीं हुआ है । णो पहीणसंसार वेयणिज्जे-जिसका संसार वेदनीय कर्म क्षीण नहीं हुआ है। णो वोच्छिण्ण संसारे' जिसको चार गति रूप संसार में अनेक बार परिभ्रमण करना है । ‘णो वोच्छिण्ण संसार वेयणिज्जे'-चार गतिरूप संसार में अनेक बार परिभ्रमण करने रूप कर्म क्षीण नहीं हुआ है । ‘णो णिट्ठियडे'-जिसका प्रयोजन समाप्त नहीं हुआ है अर्थात् जिसका प्रयोजन अधूरा है। ‘णो णिट्ठियट्ठकरणिज्जे' अर्थात् जिसके कार्य निष्ठितार्थ (पूरे) नहीं हुए हैं, ऐसे मुनि को पहले अनेक बार मनुष्य भव आदि प्राप्त हुए थे, परन्तु इस भव में शुद्ध चारित्र की प्राप्ति होने से मुक्त होने का अवसर है, फिर भी वह अनेक बार नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवगप्ति रूप चतुर्गति संसार में परिभ्रमण करता है।
'इत्थत्यं' के स्थान पर 'इत्थत्तं' ऐसा पाठान्तर भी है। जिसका तात्पर्य यह है कि क्रोधादि कषाय के उदय से चारित्र से पतित हुए साधु को संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है । जैसा कि कहा है
जह उवसंतकसाओ लहइ अणंतं पुणो वि परिवायं ।
गह मे विससियन्वं, थेवे वि कसायसेसम्मि ॥ अर्थात्-जिसके क्रोधादि कषाय उपशान्त हो गये हैं, ऐसा जीव फिर भी अनन्त प्रतिपात को प्राप्त होता है । इसलिए कषाय की मात्रा थोड़ी सी भी बाकी रहे, तो मोक्षा
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