Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 493
________________ __ ४७४ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ पावपित्य स्थविरों की आत्मऋद्धि निदा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासा-मरणभयविप्पमुक्का, जावकुत्तियावणभूया, बहुस्सुया बहुपरिवारा, पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिवुडा अहाणुपुट्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइजमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव तुंगिया नगरी जेणेव पुप्फवईए चेइए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति । विशेष शब्दों के अर्थ-पासावच्चिज्जा--पाश्र्वापत्य = भगवान् पार्श्वनाथ के सन्तानिये, ओयंसी-ओजस्वी, वच्चंसी-वर्चस्वी = प्रतापी, जसंसी-यशस्वी, जिअजीत लिया, दूइज्जमाणा-जाते हुए, उग्गहं उग्गिहित्ता-अवग्रह ग्रहण करके । । भावार्थ-उस काल उस समय में भगवान पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य स्थविर भगवान् अनुक्रम से विचरते हुए प्रामानुग्राम जाते हुए पांच सौ साधुओं के साथ तुंगिया नगरी के बाहर ईशान कोण में स्थित पुष्पवती उद्यान में पधारे और यथाप्रतिरूप अवग्रह को लेकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते. हए विचरने लगे। वे स्थविर भगवन्त जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बलसम्पन्न, रूपसम्पन्न, विनयसम्पन्न, ज्ञानसम्पन्न, दर्शनसम्पन्न, चारित्रसम्पन्न, लज्जासम्पन्न, लाघवसम्पन्न, नम्रतायुक्त, ओजस्वी, तेजस्वी, प्रतापी और यशस्वी थे। उन्होंने क्रोध, मान, माया, लोभ, निद्रा, इन्द्रियाँ और परीषहों को जीत लिया था। वे जीवन की. आशा और मरण के भय से रहित थे यावत वे कुत्रिकापणभत थे अर्थात् जैसे-कुत्रिकापण में जो चाहिए वह वस्तु मिल सकती है, उसी प्रकार उनसे भी जैसा चाहिए वैसा बोध मिल सकता एवं उनमें सब गुण मिल सकते थे । वे बहुश्रुत और बहु परिवार वाले थे। विवेचन-यहाँ 'स्थविर' शब्द से श्रुतवृद्ध-ज्ञानवृद्ध का ग्रहण किया गया है । 'रूपसम्पन्न' का मतलब है-उत्तम साधुवेष से युक्त अथवा शरीर की सुन्दरता से युक्त । लज्जा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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