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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ मैथुन में जीव हिंसा
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३३ प्रश्न-हे भगवन् ! मैथुन सेवन करते हुए जीव के किस प्रकार का असंयम होता है ? __३३ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष, तपी हुई सलाई डाल कर, रुई को नली या बूर नामक वनस्पति को नली को जला डालता है, उस तरह का असंयम मैथुन सेवन करते हुए जीव के होता है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं, यह. इसी प्रकार है, ऐसा कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं।
विवेचन-गाय आदि की योनि में गया हुआ-शतपृथक्त्व (दो सौ से लेकर नौ सौ तक.) बैलों का वीर्य, वहीं वीर्य गिना जाता है। उस वीर्य के समुदाय में उत्पन्न हुआ एक जीव, उन सब का (जिनका कि वीर्य योनि में गया है) पुत्र कहलाता है । इस प्रकार एक जीव, एक ही भव में उत्कृष्ट नौ सौ जीवों का पुत्र हो सकता है अर्थात् एक ही भव में एक जीव के उत्कृष्ट नौ सौ पिता हो सकते हैं।
: मत्स्य आदि जब मैथुन सेवन करते हैं, तब उनके एक बार के संयोग में शतसहस्रपृथक्त्व (दो लाख से लेकर नौ लाख तक) जीव पुत्र रूप से उत्पन्न होते है और जन्म लेते हैं। इस प्रकार एक ही भव में एक जीव के उत्कृष्ट शतसहस्रपृथक्त्व पुत्र हो सकते हैं। मनुष्यस्त्री की योनि में यद्यपि बहुत जीव उत्पन्न होते हैं, तथापि जितने उत्पन्न होते हैं वे सब के सब निष्पन्न नहीं होते हैं अर्थात् जन्म नहीं लेते हैं ।
कर्मकृत योनि में अर्थात् नामकर्म से बनी हुई योनि में अथवा जिसमें कामोत्तेजक क्रिया हुई है, उस. योनि में मैथुनवृत्तिक (मैथुन की वृत्ति वाला) अथवा मैथुनप्रत्ययिक (मैथुन का हेतु रूप) संयोग (सम्बन्ध) होता है, तब स्त्री की योनि में पुरुष का वीर्य और स्त्री का रुधिर, इन दोनों का सम्मिश्रण होता है और उसी में जीव की उत्पत्ति होती है।
मैथुन में किस प्रकार का असंयम होता है ? इस बात को बतलाते हुए कहा गयां है कि-जैसे किसी बांस आदि की नली में रूई या बूर (रूई से भी अधिक कोमल एक प्रकार की वनस्पति) भरा हुआ हो, उसमें कोई पुरुष, तपी हुई लोह की सलाई डाले, तो उस नली में रही हुई रूई या बूर, जल कर भस्म हो जाती है, उसी प्रकार मैथुन सेवन करते हुए पुरुष के मेहन (लिंग-पुरुष चिन्ह) द्वारा स्त्री की योनि में रहे हुए जीवों का नाश हो जाता है । वे जीव पञ्चेन्द्रिय होते हैं । उनका विनाश हो जाता है। मैथुन सेवन करने से इस प्रकार का असंयम होता है।
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