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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ तुंगिका के श्रावकों का वर्णन
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उसका वर्णन करना चाहिए । तुंगिया नगरी के बाहर उत्तर और पूर्व दिशा में अर्थात् ईशानकोण में पुष्पवती नाम का बगीचा था। उसका वर्णन करना चाहिए। उस तुंगिया नगरी में बहुत-से श्रमणोपासक (श्रावक) रहते थे। वे श्रमणोपासक आढय (विशाल सम्पत्ति वाले) और दीप्त (देदीप्यमान)थे । उनके रहने के घर विशाल और बहुत ऊंचे थे। उनके पास शयन (पथरणा) आसन, गाडी, बैल आदि बहुत थे। उनके पास धन, सोना चांदी आदि बहुत था। वे आयोग प्रयोग द्वारा अर्थात् ब्याज आदि के व्यवसाय द्वारा दुगुना तिगुना धनोपार्जन करने की कला में तथा अन्य कलाओं में कुशल थे। उनके घर अनेक जन भोजन करते थे, इसलिए उनके घर बहुत खानपान तैयार होता था। उनके घर अनेक दास दासी तथा गाय, भैंस, भेड़, बकरियां आदि थे। वे बहुत जन के भी अपरिभूत थे अर्थात् कोई भी उनका पराभव नहीं कर सकता था।
विवेचन-तिर्यञ्च और मनुष्य की उत्पत्ति के. सम्बन्ध में पहले विचार किया गया था। अब देवोत्पत्ति के सम्बन्ध में विचार किया जा रहा है । जिसमें पहले तुंगिया नगरी के श्रावकों का वर्णन चलता है । तुंगिया नगरी के श्रावकों के लिए मूलपाठ में जो विशेषण दिये गये हैं, उनका विस्तृत अर्थ इस प्रकार है
'अड्ढे'-आढय अर्थात् धन धान्य आदि से परिपूर्ण ।
'दित्ते'-दीप्त अर्थात् प्रख्यात अथवा दृप्त अर्थात् गर्वित । . . 'वित्थिण्ण विपुलभवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णा'-जिनके विशाल और ऊंचे घर हैं, वे घर, शयन (बिस्तर गादी आदि) आसन, यान-गाड़ी आदि, वाहन-बैल, घोडे. आदि से भरे हुए थे (अथवा जिनके घर विशाल और ऊंचे थे तथा जिनके शयन, आसन, यान और वाहन सुन्दर थे।)
- 'बहुधण बहुजायस्वरयया'-अर्थात् जिनके पास बहुत धन, बहुत सोना और चांदी थी। .... आओगपओगसंपउत्ता' आयोग प्रयोग संप्रयुक्त अर्थात् दुगुना तिगुना करने के उद्देश्य से रुपया देना 'आयोग' कहलाता है और किसी प्रकार की कला-हुनर 'प्रयोग' कहलाता है। इन दोनों प्रकार के व्यवसाय में वे चतुर थे।
- 'विच्छड्डियविपुलभत्तपाणा'-अर्थात् उनके घर बहुत से मनुष्य भोजन करते थे,
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