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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ तुंगिका के श्रावकों का वर्णन
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उवलद्धपुण्णपावा-पुण्य और पाप के स्वरूप को प्राप्त कर लिया, आसव-कर्म आने का मार्ग, संवर-कर्म रोकना, निज्जर-कर्म झाड़ना, किरिया-जो की जाती है, अहिकरण-अधिकरण
= क्रिया का साधन, बंध-कर्म का आत्मा के साथ बँधना, मोक्ख-मोक्ष = कर्मों से मुक्त होना, कुसला-निपुण, असहेज्जदेव-देवों को भी सहायता नहीं चाहने वाले, अणतिक्कमणिज्जा -उल्लंघन न करने वाले, निस्संकिया-शंका रहित, निक्कंखिया-पर दर्शन की इच्छा रहित, निवितिगिच्छा-फल की शंका से रहित, लट्ठा-लब्धार्थ = तत्त्वार्थ को प्राप्त करने वाले, गहियट्ठा-प्रहितार्थ = सूत्रार्य को ग्रहण किये हुए, पुच्छियट्ठा-पृष्टार्थ = प्रश्न पूछकर सूत्रार्थ प्राप्त किये हुए, अभिगयट्ठा-विशेष प्रकार से अर्थ ग्रहण किये हुए, विणिच्छियट्ठा-रहस्य प्राप्त करके अर्थ का निश्चय किया, अद्विमिजपेमाणुरागरता-उनकी हड्डियाँ और मज्जा धर्म प्रेम से रंगी हुई, ऊसियफलिहा-जिनके किंवाड़ के पीछे की आगल ऊंची की हुई है, अवंगुयदुवारा-जिनके दरवाजे पर किंवाड़ नहीं लगे हुए हैं, चियत्तंतेउरघरप्पवेसा-अन्तःपुर और परघर में प्रवेश करने से जिनके प्रति लोगों को अप्रीति उत्पन्न नहीं होती, वेरमण -निवृत्त होना, पच्चक्खाण-त्याग की प्रतिज्ञा, फासु-निर्जीव, एसणिज्ज-निर्दोष, चाउद्दसद्वमुट्ठिपुण्णमासिणीसु-चवदस, अष्टमी, उद्दिट्ट अर्थात् अमावस्या और पूर्णमासी के दिनों में, अहापडिग्गहिएहि-यथाप्रतिगृहीत = ग्रहण किये अनुसार ।
भावार्थ-वे जीव और अजीव के स्वरूप को भली प्रकार से जानते थे । पुण्य पाप के विषय में उनका पूरा ध्यान था। आश्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बन्ध और मोक्ष के विषय में वे कुशल थे अर्थात् इनमें कौन हेय है और कौन उपादेय है, इस बात को वे भली प्रकार जानते थे। वे किसी भी कार्य में दूसरों की सहायता की आशा नहीं रखते थे। वे निर्ग्रन्थ प्रवचनों में ऐसे दृढ़ थे कि देव, असुर, नाग, ज्योतिष्क, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, गरुड (सुवर्णकुमार), गन्धर्व, महोरग आदि कोई भी देव, दानव उन्हें निर्ग्रन्थ-प्रवचन से डिगाने में समर्थ नहीं थे। उन्हें निर्ग्रन्थ-प्रवचनों में किसी भी प्रकार की शंका, कांक्षा, विचिकित्सा नहीं थी। उन्होंने निर्ग्रन्थ प्रवचनों का अर्थ भली प्रकार जाना था । शास्त्रों के अर्थ को भली प्रकार ग्रहण किया था। शास्त्रों के अर्थों में जहाँ सन्देह था उनको पूछ कर अच्छी तरह निर्णय किया था। उन्होंने शास्त्रों के अर्थों को और उनके रहस्यों को निर्णयपूर्वक जाना था। निम्रन्य.
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