________________
भगवती सूत्र - श. २ उ. ५ तुंगिका के श्रावकों का वर्णन
तुंगिका के श्रावकों के प्रश्नोत्तर
३४ - तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ, गुणसिलाओ चेहयाओ पडिनिक्खमह, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ । ते णं काले णं, ते णं समए णं, तुंगिया नामं नगरी होत्या, वण्णओ । तीसे णं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवतिए नामं चेहए होत्था, वण्णओ । तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति, अड्ढा दित्ता वित्थिण्णविपुलभवण-सयणाऽसण- जाण - वाहणाइण्णा, बहुधण- बहुजायरूवरयया, आयोग-पयोगसंपउत्ता, विच्छड्डियविपुलभत्तपाणा, बहुदासी दास-गो-महिस- गवेलयप्पभूया, बहुजणस्स अपरिभूया ।
४६८
विशेष शब्दों के अर्थ - अड्डा - आढय-बहुत धनयुक्त, दित्ता - देदीप्यमान, वित्थिष्णविस्तीर्ण, आइण्णा-आकीर्ण युक्त, बहुजायरूवरयया - बहुतसा सोना चांदी, आयोगपयोगसंपउत्ता - आयोग प्रयोग सम्प्रयुक्त अर्थात् ब्याज आदि का व्यवसाय करके दुगुना तिगुना धनोपार्जन करने तथा अन्य कला हुनर में कुशल, विच्छड्डियविपुल- बहुत छोड़ा हुआ, गवेल - भेड़ बकरी, प्पभूया - बहुत, अपरिभूया - जिसे कोई नहीं डिगा सके ।
भावार्थ - ३४ इसके बाद किसी एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशीलक बगीचे से निकल कर बाहर जनपद में विचरने लगे । उस काल उस समय में तुंगिया ( तुंगिका) * नाम की नगरी थी ।
* बनारस (काशी) से ८० कोस दूर पाटलीपुर (पटना) शहर है। वहां से दस कोस दूर लुंगिया नाम की नगरी है : (श्री समेतशिखर रास ) ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org