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भगवती सूत्र - श. २ उ. ५ पितापुत्र
३३ उत्तर - गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे रूयनालियं वा बूरनालियं वा तत्तेणं कणरणं समविधं तेज्जा, एरिस एणं गोयमा ! मेहुणं सेवमाणस्स असंजमे कज्जइ ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरह ।
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विशेष शब्दों के अर्थ – सयपुहुत्तस्स - शतपृथक्त्व - दो सौ से लेकर नौ सौ तक, सयसहस्सपुहुत्तं - शतसहस्रपृथक्त्व = दो लाख से लेकर नौ लाख तक, कम्मकडाए— कामोतेजित, मेहुणवत्तिए - मैथुनवृत्तिक, संजोए - संयोग, संचिर्णति-संबंध करते हैं, रूयणालयं - रूई की नलिका, बूरणालियं - बूर - एक प्रकार की वनस्पति की नलिका, तसेणंगर्म, कणणं - सलाई, समविद्धंसेज्जा - विध्वंस हो जाता है ।
३० प्रश्न - हे भगवन् ! एक जीव, एक भव में कितने जीवों का पुत्र हो सकता है ?
३० उत्तर - हे गौतम ! एक जीव, एक भव में जघन्य एक जीव का, या दो जीव का, अथवा तीन जीव का और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व ( दो सौ से लेकर नौ सौ तक) जीवों का पुत्र हो सकता है ।
३१ प्रश्न - हे भगवन् ! एक भव में एक जीव के कितने पुत्र हो सकते हैं ?
३१ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य एक या दो अथवा तीन और उत्कृष्ट लक्ष पृथक्त्व (दो लाख से लेकर नौ लाख तक ) पुत्र हो सकते हैं । ३२ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
३२ उत्तर - हे गौतम ! स्त्री और पुरुष की कर्मकृत ( कामोत्तेजित ) योनि में 'मैथुनवृत्तिक' नाम का संयोग उत्पन्न होता है। जिससे पुरुष का वीर्य और स्त्री का रक्त, इन दोनों का सम्बन्ध होता है । उसमें जघन्य एक, या दो या तीन और उत्कृष्ट लक्ष पृथक्त्व (दो लाख से लेकर नौ लाख तक) जीव, पुत्र रूप में उत्पन्न होते हैं ।
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