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भगवती सूत्र--श. २ उ. ४ इन्द्रियाँ
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शतक २ उद्देशक ४ .
इन्द्रियाँ २३ प्रश्न-कइ णं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ?
२३ उत्तर-गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता, तं जहाः-पढमिल्लो इंदियउद्देसओ नेयव्वो, संठाणं बाहलं पोहत्तं, जाव-अलोगो, इंदियउद्देसो।
॥बिइयसए चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के अर्थ-पढमिल्लो-प्रथम, पोहत्तं -पृथुत्व-चौड़ाई। भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ? .
उत्तर-२३ हे गौतम ! इन्द्रियाँ पांच कही गई हैं। यहां पर प्रज्ञापना सूत्र का इन्द्रिय सम्बन्धी पन्द्रहवें पद का प्रथम उद्देशक कहना चाहिए। उसमें इन्द्रियों का संस्थान, बाहल्य (मोटाई), चौड़ाई यावत् अलोक तक का विवेचन , वाला सम्पूर्ण इन्द्रिय उद्देशक कहना चाहिए।
विवेचन-तीसरे उद्देशक में नरयिकों का वर्णन किया गया है । नैरयिकों के पांच इन्द्रियाँ होती हैं । इसलिए इस उद्देशक में इन्द्रियों का वर्णन किया जाता है । इन्द्रियों का वर्णन करने के लिए यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रिय पद के प्रथम उद्देशक की भलामणदी गई है। वहाँ द्वार गाथा यह है--
संठाणं बाहल्लं पोहत्तं कइपएस ओगाढे।
अप्पाबहु पुढ-पविट्ठ विसय अणंगार आहारे ।। अर्थ-इन्द्रियों का संस्थान कैसा है ? श्रोतेन्द्रिय का संस्थान कदम्ब के फूल के आकार है । चक्षु इन्द्रिय का संस्थान मसूर की दाल अथवा चन्द्रमा के आकार है । घ्राणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्तक फूल के समान है । रसनेन्द्रिय का संस्थान उस्तरे (क्षुरप्र) के आकार है । स्पर्शनेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का है।
बाहल्लं-(बाहल्य)-पांचों इन्द्रियों की मोटाई अंगुल के असंख्यातवें भाग है ।
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