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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ गर्भ विचार
वैक्रिय करके दो रूप बनाता है-एक देवी का और एक देव का । फिर वे दोनों रूप परस्पर परिचारणा करते हैं । इस प्रकार एक जीव, एक ही समय में दो वेद का अनुभव करता है।
___ भगवान् फरमाते है कि अन्यतीथिकों की उपर्युक्त मान्यता मिथ्या है, क्योंकि एक जीव एक समय में एक ही वेद का अनुभव कर सकता है, दो वेद का अनुभव नहीं कर सकता है । पुरुषवेद और स्त्रीवेद, ये दोनों एक ही समय में उदय में नहीं आ सकते है। क्योंकि ये दोनों वेद परस्पर विरुद्ध हैं । जो दो वस्तुएँ परस्पर निरपेक्ष, विरुद्ध होती हैं, वे एक ही समय में एक स्थान पर नहीं रह सकती हैं, जैसे-अन्धेरा और प्रकाश । इसी तरह स्त्रीवेद और पुरुषवेद ये दोनों परस्पर विरुद्ध हैं। अतः ये दोनों एक समय में, एक साथ नहीं वेदे जाते हैं।
___ गर्भ विचार २५ प्रश्न-उदगगम्भे णं भंते ! उदगगन्भे त्ति कालओ केव- . चिरं होइ ? .
२५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासा।
२६ प्रश्न-तिरिक्खजोणियगब्भे णं भंते ! तिरिक्खजोणियगब्भे त्ति कालओ केवच्चिर होइ ?
२६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अट्ठ संवच्छराई।
२७ प्रश्न-मणुस्सीगन्भे णं भंते ! मणुस्सीगन्भे ति कालओ केवञ्चिरं होइ ?
२७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं बारस संवच्छराई। . २८ प्रश्न कायभवत्थे णं भंते ! कायभवत्थे ति कालओ केव
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