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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ परिचारणा
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क्या यह अन्यतीथिकों का कथन सत्य है ।
२४ उत्तर--हे गौतम ! अन्यतीथिकों का उपर्युक्त कथन (कि एक ही जीव, एक समय में दो वेदों का अनुभव करता है) मिथ्या है।
हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूँ, प्ररूपणा करता हूँ कि कोई एक निर्ग्रन्थ जो मर कर किसी देवलोक में जो कि महा ऋद्धि युक्त यावत् महाप्रभाव युक्त, दूर जाने की शक्ति युक्त, और लम्बी आयुष्य युक्त होते हैं, उनमें से किसी एक देवलोक में महा ऋद्धि युक्त, दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाला, अति रूप सम्पन्न, देव होता है । वह देव, दूसरे देवों के साथ में और दूसरे देवों की देवियों के साथ में, उनको अपने वश में करके परिचारणा (विषय सेवन) करता है और इसी प्रकार अपनी देवियों को भी वश में करके उनके साथ परिचारणा करता है। परन्तु स्वयं दो रूप बना कर परिचारणा नहीं करता है, क्योंकि एक जीव एक समय में स्त्रीवेद और पुरुषवेद, इन दोनों वेदों में से किसी एक वेद का ही अनुभव करता है। जिस समय स्त्रीवेद को वेवता (अनुभव करता) है, उस समय पुरुषवेद को नहीं वेदता है और जिस समय पुरुषवेद को वेदता है, उस समय स्त्रीवेद को नहीं वेदता है। क्योंकि स्त्रीवेद के उदय से पुरुषवेद को नहीं वेदता और पुरुषवेद के उदय से स्त्रीवेद को नहीं वेदता है । इसलिए एक जीव, एक समय में स्त्रीवेद और पुरुषवेद इन दोनों वेदों में से किसी एक ही वेद को वेदता है। जब स्त्रीवेद का उदय होता है तब स्त्री, पुरुष की इच्छा करती है और जब पुरुषवेद का उदय होता है, तब पुरुष, स्त्री की इच्छा करता है अर्थात् अपने अपने वेद के उदय से पुरुष और स्त्री परस्पर एक दूसरे की इच्छा करता है। स्त्री, पुरुष की इच्छा करती है और पुरुष, स्त्री को इच्छा करता है।
विवेचन-चौथे उद्देशक में इन्द्रियों का कथन किया गया है । इन्द्रियों के होने पर परिचारणा (विषय सेवन) हो सकती है। इसलिए इस उद्देशक में परिचारणा का वर्णन किया गया है। पहले अन्यतीथिकों की मान्यता का वर्णन किया गया है। अन्यतीथिकों की मान्यता है कि-जो निग्रन्थ आदि मर कर देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होता है वह
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