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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक
इनके ज्ञाता थे । वेद के छह अंग होते हैं, यथा-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्दशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र । जो ग्रन्थ वेदों के अर्थ को विस्तारपूर्वक बतलाते हैं, वे वेद के 'उपांग' कहलाते हैं । स्कन्दक परिव्राजक, अंग और उपांग सहित वेदों के जानकार थे। इतना ही नहीं, किंतु वे सारक, वारक, धारक और पारक थे अर्थात् सारक-शिष्यों को पढ़ाने वाला अथवा स्मारक यानी भूले हुए पाठ को याद कराने वाले । वारक अर्थात्यदि कोई शिष्य अशुद्ध पाठ बोलता हो, तो उसे रोकने वाले । धारक अर्थात् पढ़ी हुई विद्या को सम्यक् प्रकार से धारण करने वाले अथवा अपने पढ़ाये हुए शिष्यों को संयम में सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति कराने वाले। पारक अर्थात् उनके शास्त्रों के पारगामी-शास्त्रों में निपुण । अक्षरों के स्वरूप को बताने वाले शास्त्र को 'शिक्षा' कहते हैं । परिव्राजकों के आचार को बतलाने वाले शास्त्र को 'कल्प' कहते हैं । शब्द शास्त्र को 'व्याकरण' कहते है । कविता के स्वरूप को बतलाने वाले पिंगल आदि ग्रन्थों को 'छन्द' कहते हैं । शब्द की व्युत्पत्ति बतलाने वाले शास्त्र को 'निरुक्त' कहते हैं और निमित्त बतलाने वाले एवं ग्रह आदि बतलाने वाले ग्रन्थ को 'ज्योतिष' कहते हैं । स्कन्दक परिव्राजक इन सब में तथा ब्राह्मण सम्बन्धी और परिव्राजक सम्बन्धी दर्शन शास्त्रों में निपुण थे।
तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए णामं नियंठे वेसालिय. सावए परिवसइ । तए णं से पिंगलए णामं नियंठे वेसालियसावए अण्णया कयाइं जेणेव खंदए कच्चायणसगोत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंदगं कचायणस्सगोत्तं इणमक्खेवं पुच्छे-मागहा ! किं संअंते लोए, अणंते लोए ? सअंते जीवे, अणंते जीवे ? सअंता सिद्धी, अणंता सिद्धी ? सअंते सिधे अणंते सिद्धे ? केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वड्ढइ वा, हायइ वा ? एतावं ताव आयक्खाहि । वुच्चमाणे एवं। _ विशेष शब्दों के अर्थ-वेसालियसावए-वैशालिक श्रावक अर्थात् भगवान् महावीर के
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