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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक की अंतिम आराधना ।
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इमेणं एयारवेणं तवेणं ओरालेणं, विउलेणं तं चेव जाव-कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए ति कटु एवं संपेहेसि, संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए जाव-जलंते जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वमागए। से णूणं खंदया ! अढे समढे ? हंता अस्थि । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं । .
विशेष शब्दों के अर्थ-पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि-रात्रि के अन्तिम प्रहर में, संपेहेसि-विचार किया, कल्लं-कल, पाउप्पभायाए–प्रातःकाल । ... . . भावार्थ-इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने स्कन्दक मुनि से इस प्रकार कहा कि-हे स्कन्दक ! रात्रि के पिछले पहर में धर्म जागरणा करते हुए तुम्हें ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि इस उदार तप से मेरा शरीर अब कृश हो गया है यावत् अब मैं संलेखना संथारा करके मृत्यु की वांछा न करते हुए स्थिर रहूँ। ऐसा विचार कर प्रातःकाल सूर्योदय होने पर तुम मेरे पास आये हो । हे स्कन्दक ! क्या यह बात सत्य है।
- स्कन्दक मुनि ने कहा कि-हे भगवन् ! आप फरमाते हैं वह बात सत्य है। तब भगवान ने फरमाया कि-हे देवानुप्रिय ! जिस तरह तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो।
विवेचन-भगवान् ने तपस्वीराज श्रीस्कन्दकजी के मनोगतभावों को प्रकट करके उन्हें अंतिम साधना करने की अनुमति प्रदान करदी। .
.. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्टतुटु० जाव-हयहियए उट्ठाए उठेइ, उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणप्पयाहिणं करेइ, जाव-नमंसित्ता.. सयमेव पंच महत्वयाइं आरहेइ, आरुहित्ता समणा य, समणीओ
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