________________
भगवती सूत्र --श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक की गति
भावार्थ - इसके बाद गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीरस्वामी को वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा कि हे भगवन् ! आपके शिष्य स्कन्दक अनगार काल के अवसर पर काल करके कहाँ गये और कहां उत्पन्न हुए हैं ?
गौतमादि को सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने फरमाया कि - हे गौतम! मेरा शिष्य स्कन्दक अनगार, मेरी अनुमति लेकर, स्वयमेव पांच महाव्रतों का आरोपण करके यावत् संलेखना संथारा करके, समाधि को प्राप्त होकर काल के समय में काल करके अच्युतकल्प में देव रूप से उत्पन्न हुआ है। वहाँ कितनेक देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की है । तद्नुसार स्कन्दक देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है ।
४४९
इसके बाद गौतमस्वामी ने पूछा- हे भगवन् ! वहाँ की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर स्कन्दक देव कहाँ जायेंगे और कहाँ उत्पन्न होंगे ?
भगवान् ने फरमाया - हे गौतम ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त करेंगे और सभी दुःखों का अन्त करेंगे ।
विवेचन - गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने फरमाया कि - स्कन्दक अनगार यथासमयय काल करकें बारहवें देवलोक में गये हैं । वहाँ उनकी बाईस सागरोपम की स्थिति है । वहाँ की स्थिति पूर्ण होने पर वे महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर संयम अंगीकार करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे यावत् सभी दुःखों का अन्त करेंगे ।
यहाँ मूल में 'कहि गए, कहि उववण्णे' शब्द हैं । 'कहि गए' का अर्थ है - कहाँ गये ? अर्थात् किस गति में गये ? 'कहि उबवण्णे' का अर्थ है - कहाँ उत्पन्न हुए ? अर्थात् किस. देवलोक में उत्पन्न हुए ।
'आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं' का अर्थ इस प्रकार है- 'आउक्खएणं' अर्थात् आयुष्य कर्म के दलिकों की निर्जरा होने से । 'भवक्खएणं' देव भव के कारणभूत गत्यादि कर्मों की निर्जरा होने से । 'ठिइक्खएणं' अर्थात् आयुष्य कर्म की स्थिति भोग लेने से ।
स्कन्दक अनगार ने ग्यारह अंगों का ज्ञान पढ़ा। बारह भिक्खुपडिमा और गुणरत्नसंवत्सर तप किया। बारह वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन किया । विपुलगिरि पर संथारा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org