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भगवती सूत्र-श. २ उ. २ समुद्घात
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की स्थिति के बराबर करने के लिए समुद्घात करते हैं । केवलिसमुद्घात में आठ समय लगते हैं । प्रथम समय में केवली आत्मप्रदेशों के दण्ड की रचना करता है । वह मोटाई में स्वशरीर परिमाण और लम्बाई में ऊपर और नीचे से लोकान्तपर्यन्त विस्तृत होता है । दूसरे समय में केवली उसी दण्ड को पूर्व और पश्चिम अथवा उत्तर और दक्षिण में फैलाता है। जिससे उस दण्ड का लोक पर्यन्त फैला हुआ कपाट बनता है। तीसरे समय में दक्षिण और उत्तर, अथवा पूर्व और पश्चिम दिशा में लोकान्त पर्यन्त आत्म प्रदेशों को फैला कर उसी कपाट को मथानी रूप बना देता है । ऐसा करने से लोक का अधिकांश भाग आत्मप्रदेशों से व्याप्त हो जाता है, किन्तु मथानी की तरह अन्तराल प्रदेश खाली रहते हैं। चौथे समय में मथानी के अन्तरालों को पूर्ण करता हुआ समस्त लोकाकाश को आत्मप्रदेशों से व्याप्त कर देता है, क्योंकि लोकाकाश और जीव के प्रदेश बराबर हैं। पांचवें, छठे, सातवें और आठवें समय में विपरीत क्रम से आत्मप्रदेशों का संकोच करता है । इस प्रकार नववें समय में सब आत्म-प्रदेश पुनः शरीरस्थ हो जाते हैं।
__चार स्थावर, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों के प्रथम के तीन समुद्घात होते हैं । वायुकाय और नारकी जीवों के चार समुद्घात होते हैं । देव और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में पांच समुद्घात होते हैं और मनुष्यों में सातों समुद्घात होते हैं । छद्मस्थ मनुष्यों में पहले के छह समुद्घात होते हैं और केवलज्ञानी में एक केवलिसमुद्घात होता
... ॥ दूसरे शतक का दूसरा उद्देशक समाप्त ॥
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