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भगवती सूत्र-श. २ उ. ३ पृथ्वियाँ
शतक २ उद्देशक ३
पृथ्वियाँ २१ प्रश्न-कइ णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ?
२१ उत्तर-जीवाभिगमे नेरइयाणं जो बितिओ उद्देसो सो णेयवो पुढवी ओगाहित्ता निरया संठाणमेव बाहल्लं, जाव
२२ प्रश्न-किं सव्व पाणा उववण्णपुव्वा ?
२२ उत्तर-हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो । पुढवी उद्देसो।
॥बिइएसए तइओ उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के अर्थ-णेयव्यो-जानना चाहिए, संठाण-संस्थान, बाहल्लं-मोटाई, उववण्णपुव्वा-पहले उत्पन्न हुए, असई-अनेक बार, अदुवा-अथवा, अर्णतक्खुतो-अनन्तबार ।
२१ भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! पश्वियां कितनी कही गई हैं ?
२१ उत्तर-हे गौतम ! जीवाभिगम सूत्र में जो नरयिकों का दूसरा उद्देशक कहा है, उसमें पृथ्वियों सम्बन्धी जो वर्णन आया है, वह यहाँ जान लेना चाहिए। वहां संस्थान, मोटाई आदि का जो वर्णन है, वह सारा यहां कहना चाहिये । यावत्
२२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब जीव उत्पन्नपूर्व हैं अर्थात् सब जीव पहले नरकों में उत्पन्न हुए हैं ? ।
- २२ उत्तर-हाँ, गौतम! सब जीव रत्नप्रभा आदि नरकों में अनेक बार अथवा अनन्तबार पहले उत्पन्न हो चुके हैं। यहाँ जीवाभिगम सूत्र का पृथ्वी उद्देशक कहना चाहिए।
विवेचन-दूसरे उद्देशक में 'समुद्घात' का वर्णन करते हुए मारणान्तिक समुद्घात
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