Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 461
________________ ४४२ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-भगवान् की आज्ञा . हुई वृक्ष की डाली के समान स्थिर रहना) संथारा करके, मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए स्थिर रहना मेरे लिए श्रेष्ठ है । इस प्रकार विचार करके प्रातःकाल होने पर यावत् सूर्योदय होने पर स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी · की सेवा में आकर उन्हें । वन्दना नमस्कार करके यावत् पर्युपासना करने लगे। विवेचन-रात्रि के पिछले भाग में धर्म-जागरण करते हुए स्कन्दक मुनि को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि यद्यपि इस उदार तप के द्वारा मेरा शरीर कृश हो गया है, तथापि . . जबतक मेरे शरीर में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम है और जब तक मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक, जिन (तीर्थङ्कर) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी, गन्धहस्ती की तरह इस भूतल पर विचर रहे हैं, तब तक उनकी मौजूदगी में मुझे अनशन करना श्रेयस्कर है। स्कन्दक मुनि ने भगवान् की मौजूदगी में ही अनशन करने का जो विचार किया, इसमें दो कारण हैं। वे इस प्रकार हैं-- भगवान् की मौजूदगी में उनकी साक्षी से जो अनशन किया जायगा उसका महान् फल होगा । अथवा भगवान् का निर्वाण हो जाने पर मुझे शोकजन्य दुःख न हो, इसलिए भगवान् के निर्वाण पधारने के पहले ही उनकी मौजूदगी में उनके पास जाकर उनकी अनुमति से अनशन कर लूं । इसलिए प्रातःकाल सूर्योदय हो जाने पर मैं भगवान् की सेवा में जाकर उन्हें वन्दना नमस्कार कर उनकी आज्ञा प्राप्त करके कडाई (कृतयोगी, प्रतिलेखन आदि क्रिया करने में कुशल, धर्मप्रिय एवं धर्म में दृढ़) स्थविरों के साथ धीरे धीरे विपुल पर्वत पर चढ़ कर पृथ्वी शिलापट्ट, जो कि वर्षा ऋतु के मेघों के समान काली है, जो अत्यन्त सुन्दर होने के कारण जिस पर देक क्रीड़ा . करने के लिए आते हैं उस पर आहार पानी का त्याग करके संलेखना करके पादपोपगमन संथारा करूंगा । यह मेरे लिए श्रेयस्कर है । ऐसा विचार स्कन्दक मुनि ने किया । ____खंदया! इसमणे भगवं महावीरे खंदयं अमगार एवं क्यासीःसे पूर्ण तव खंदया ! पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव-जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपजित्या-एवं खलु आई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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