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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक का धर्म जागरण
कम्मे बले वीरिए पुरिसकारपरकमे, जाव-य मे धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासे किंसुयसुयमुहगुंजद्धरागसरिसे, कमलागरसंडबोहए, उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता, नमंसित्ता जाव-पज्जुवासित्ता, समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महब्वयाणि आरोवेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता, तहारूवेहिं थेरेहि कडाईहिं सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं सणियं दुरुहित्ता मेहघणसंनिगास, देवसन्निवातं पुढवीसिलापट्टयं पडिलेहित्ता, दम्भसंथारगं संथरित्ता, दब्भसंथारोवगयस्स, संलेहणाझूसणाझसियस्स, भत्तपाणपडियाइक्खियस्स, पाओवगयस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव-जलंते जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव जावपज्जुवासइ। ... .
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विशेष शब्दों के अर्थ-फुल्लप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि-कोमल कमलों के विकसित हो जाने पर, अहापंडुरे पभाए-निर्मल प्रभात हो जाने पर, रत्तासोयप्पकासे-लालरंग के अशोक के समान, किसुय-केसूडे के फूल के समान, सुयमुह-तोते की चोंच, गुंजनरागसरिसे-चिरमी के अर्ध-लालभाग जैसा, कमलागरसंडबोहए-कमलवनों को विकसित करने वाले, उढियम्मि सूरे-उदय हुआ सूर्य,सहस्सरस्सिम्मि-हजार किरणों वाले, विणयरे-दिनकर,
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