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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-लोक स्वरूप
ण कयाइ ण भवइ, ण कयाइ ण भविस्सइ, भविंसु य भवइ य.. भविस्सइ य । धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे, नत्थि पुण से अंते । ४ भावओ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा गंधरस-फासपजवा, अणंता संठाणपजवा, अणंता गरुयलहुयपजवा अणंता अगरुयलहुयपजवा, नत्थि पुण से अंते । सेत्तं खंदया ! दव्वओ लोए सअंते, खेत्तओ लोए सअंते, कालओ लोए अणंते, भावओ लोए अणंते।
. विशेष शब्दों के अर्थ-आयामविक्खंभेणं-लम्बाई चौड़ाई, परिक्खेवेणं-परिधि घेरा, धुवे-ध्रुव, णियए-नियत, सासए-शाश्वत, अक्खए-अक्षय, अब्बए-अव्यय, अवट्ठिए-अवस्थित, णिच्चे-नित्य ।
___ भावार्थ-तब भगवान् ने फरमाया कि-हे स्कन्दक ! लोक के विषय में तुम्हारे मन में जो यह संकल्प था कि क्या लोक अन्त सहित है ? या अंत रहित है ? इस विषय में मैने चार प्रकार का लोक बतलाया है-१ द्रव्यलोक, २ क्षेत्रलोक, ३ काललोक और ४ भावलोक।
१ द्रव्य से लोक एक है, अन्त सहित है। २ क्षेत्र से लोक असंख्यात कोडाकोडी योजन का लम्बा चौड़ा है। असंख्य कोडाकोडी योजन की परिधि है । अंत सहित है। ३ काल से लोक भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्यत काल में रहेगा। ऐसा कोई काल न था, न है और न होगा, जिसमें लोकन हो । लोक था, है, और रहेगा। लोक ध्रुव है, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय अवस्थित और नित्य है, अन्त रहित है । ४ भाव से लोक अनन्त वर्ण पर्याय रूप है, अनन्त गन्ध, रस, स्पर्श पर्याय रूप है, अनन्त संस्थान पर्यव रूप है, अनन्त गुरुलघु पर्याय रूप है, अनन्त अगुरुलधु पर्याय रूप है, अन्त रहित है । इस
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