________________
भगवती सूत्र - श २ उ. १ आर्य स्कन्दक का प्रतिमा आराधन ४२७
६ गतप्रत्यागता - एक पंक्ति के अंतिम घर में भिक्षा के लिए जाकर वहाँ से वापिस लौटकर भिक्षा ग्रहण करना ।
जहाँ उसे कोई जानता हो वहां एक जानता हो वहाँ एक या दो रात रह सकता है, जो साधु जितने दिन रहे, उसे उतने ही दिनों के प्रतिमाधारी मुनि को चार प्रकार की भाषा बोलनी कल्पती है -
रात रह सकता है और जहाँ उसे कोई नहीं किन्तु इससे अधिक नहीं । इससे अधिक छेद का या तप का प्रायश्चित्त आता है।
१ याचनी - आहार आदि के लिए याचना करने की । २ पृच्छनी - मार्ग आदि पूछने के लिए ।
३ अनुज्ञापनी स्थान आदि के लिए आज्ञा लेने की ।
४ पुटुवागरणी ( पृष्ट व्याकरणी ) - प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ।
स्वामी की आज्ञा लेकर पडिमाधारी मुनि को तीन प्रकार के स्थानों में ठहरना चाहिए। वे स्थान ये हैं
१ अध आरामगृह - ऐसा स्थान. जिसके चारों ओर बाग हो ।
२ अधो विकट गृह - ऐसा स्थान जो चारों ओर से खुला हो, सिर्फ ऊपर से ढका हुआ हो ।
३ अधोवृक्षमूलगृह - वृक्ष के नीचे बना हुआ स्थान या वृक्ष का मूल ।
Jain Education International
उपरोक्त उपाश्रय में ठहर कर मुनि को तीन प्रकार के संस्तारक - आज्ञा लेकर ग्रहण करना चाहिए - १ पृथ्वी शिला, २ काष्ठ शिला और ३ उपाश्रय में पहले से बिछा हुआ संस्तारक । शुद्ध उपाश्रय देख कर मुनि के वहाँ ठहर जाने पर यदि कोई स्त्री या पुरुष वहाँ आजाय, तो उन्हें देख कर मुनि को उपाश्रय से बाहर जाना या अन्दर आना उचित नहीं, अर्थात् मुनि यदि उपाश्रय के बाहर हों, तो बाहर ही रहना चाहिये और यदि उपाश्रय के अन्दर हों, तो अन्दर ही रहना चाहिये । आये हुए उन स्त्री पुरुषों की तरफ ध्यान न देते हुए अपने स्वाध्याय ध्यान आदि में लीन रहना चाहिए। ध्यान में तल्लीन रहे हुए मुनि के उस उपाश्रय को यदि कोई व्यक्ति आग लगा कर जलावे, तो मुनि को न तो उस ओर ध्यान ही देना चाहिये और न भीतर से बाहर या बाहर से भीतर जाना चाहिये, बल्कि निर्भीकता पूर्वक अपने ध्यान में ही तल्लीन रहना चाहिए ।
1
यदि कोई व्यक्ति मुनि का वध करने के लिए मारने के लिए आवे, तो मुनि उसे . एक बार या बारबार पकड़े नहीं, किन्तु वह अपनी मुनि मर्यादा में ही रहे, यही उसका
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org