________________
भगवती सूत्र - श २ उ. १ आयं स्कन्दक का प्रतिमा आराधन
उसमें से भिक्षा नहीं लेनी चाहिए। इसी प्रकार गर्भवती और छोटे बच्चे वाली स्त्री के लिए बना हुआ भोजन अथवा जो स्त्री, बच्चे को दूध पिला रही हो वह बच्चे को अलग रख कर भिक्षा दे, या गर्भवती स्त्री अपने आसन से उठ कर भिक्षा दे, तो वह भोजन, मुनि को नहीं कल्पता । उनका कल्प है कि जिस दाता के दोनों पैर देहली के भीतर हों, या बाहर हों, तो उससे भी भिक्षा नहीं लेनी चाहिए, किन्तु जिसका एक पैर देहली के भीतर हो और एक पैर बाहर हो उसी से भिक्षा लेना कल्पता है ।
पsिमाधारी मुनि के लिए गोचरी जाने के तीन समय बतलाये गये हैं-दिन का आदिभाग, मध्य भाग और अन्तिमभाग । यदि कोई साधु, दिन के आदिभाग ( प्रथम भाग) में गोचरी जाय, तो मध्यभाग और अन्तिमभाग में न जाय। इसी तरह यदि मध्यभाग में जाय, तो प्रथमभाग और अन्तिमभाग में न जाय । यदि अन्तिम भाग में जाय, तो प्रथमभाग और मध्य भाग में नहीं जाय । अर्थात् उसे दिन के किसी एक भाग में ही गोचरी जाना चाहिए, शेष दो भागों में नहीं। तीसरे प्रहर के तीन भाग करना अर्थ भी किया जाता है ।
४२६
मधारी साधु को छह प्रकार की गोचरी करनी चाहिए । यथा - १ पेटा २ अर्द्धपेटा, ३ गोमूत्रिका, ४ पतंगवीथिका ५ शंखावर्ता और ६ गतप्रत्यागता । इनका स्वरूप इस प्रकार है; -
-
१ पेटा - भिक्षा स्थान (ग्राम या मुहल्ले ) की कल्पना एक पेटी के समान चार . कोने वाला करके ( बीच के घरों को छोड़कर चारों कोनों के) उन घरों में भिक्षार्थ जावे । २ अर्द्धपेटा - उपरोक्त चार कोनों में से दो कोने के घरों में ही भिक्षा के लिए जावे । ३ गोमूत्रिका - जिस प्रकार चलता हुआ बैल पेशाब करता है और वह वाक
( टेढ़ा मेढ़ा ) पड़ता है, उसी प्रकार साधु भी घरों की आमने सामने की दोनों पंक्तियों में से प्रथम एक पंक्ति (लाइन) के एक घर से आहार लेवे, फिर दूसरी सामने वाली पंक्ति में के घर से आहार लेवे । इसके बाद फिर प्रथम पंक्ति के गोचरी किये हुए घर को छोड़ कर आहार लेवे । इस क्रम को 'गोमूत्रिका' कहते हैं ।
४ पतंगवीथिका - पतंगे के उड़ने की तरह एक घर से आहार लेकर फिर कुछ घर छोड़ कर आहार लेना ।
५ शंखावर्ता-शंख के चक्र की तरह गोलाकार घूमकर गोचरी लेना । यह गोचरी दो प्रकार की होती है - १ 'आभ्यन्तर शंखावर्ता' - बाहर से गोलाकार गोचरी करते हुए भीतर की ओर आना और २ 'बाह्य शंखावर्ता' - भीतर के मुहल्ले से प्रारंभ करके बाहर जाना ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org