Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक - महान् तपस्वी
'अमर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थं घटित ही नहीं होता हैं, किन्तु चूंकि :- अमर' शब्द इन अर्थों में रूढ़ हो गया है । इसलिए 'देव' तथा 'अमरचन्द' नाम के व्यक्ति को 'अमर' कहते
। इसी प्रकार 'चउत्थभत्त' शब्द भी 'उपवास' अर्थ में रूढ़ है। अतः 'चार टंक आहार छोड़ना' यह 'चउत्थभत्त' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ व्यवहार एवं प्रवृत्ति में नहीं लिया जाता है । चार टंक आहार छोड़ना ऐसा चउत्थभत्त' शब्द व्यवहार में अर्थ लेना आगमों से विपरीत है । अत: 'चउत्थभत्त' यह उपवास की संज्ञा है: -सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक आठ पहर आहार छोड़ना 'उपवास' है । एवं षष्ठभक्त अष्ठभक्त आदि शब्द - बेला, तेला आदि की संज्ञा है ।
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तए णं से खंदर अणगारे तेणं उरालेणं, विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धण्णेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्टि चम्मावणद्धे किडिविडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था । जीवंजीवेण गच्छह, जीवंजीवेण चिट्ठह, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाह, भासं भासिस्सामीति गिलाइ । से जहानामए कटुसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्त-तिल भंडगसगडिया इ वा एरंडकट्टसगडिया इवा इंगालसगडिया ह वा उन्हे दिण्णा सुका समाणी ससदं गच्छइ, ससदं चिट्ठह, एवामेव खंद्रए वि अणगारे ससदं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठह, उवचिए तवेणं, अवचिए मंस-सोणिएणं, हुयासणे विव भासरासि - पंडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव तेयसरीए अईव अईव उवसोभेमाणे
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