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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक का प्रतिमा आराधन
हो, उसी स्थान पर अपनी मर्यादापूर्वक बैठे रहना चाहिए ।
उपरोक्त विधि से भिक्षु की पहली पडिमा यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग, यथातथ्य काया द्वारा स्पर्श करके, पालन करके, अतिचारों की शुद्धि कर, पूर्ण कर, कीर्तन कर, आराधन कर के भगवान् की आज्ञानुसार पालन की जाती है। इसका समय एक महीना है । ( २ - ७) दूसरी पडिमा का समय एक मास है । इसमें उन सब नियमों का पालन किया जाता है जो पहली पडिमा में बताये गये हैं। पहली पडिमा में एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है । दूसरी पडिमा में दो दत्ति अन्न की और दो दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है। इसी प्रकार तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं पडिमाओं में क्रमशः तीन, चार, पांच, छह और सात दत्ति अन्न की और उतनी ही दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है । प्रत्येक पडिमा का समय एक एक मास है, केवल दत्तियों की वृद्धि के कारण ही ये क्रमशः द्विमासिकी, त्रिमासिकी, चातुर्मासिकी, पञ्चमासिकी, षण्मासिकी और सप्तमासिकी पडमाएँ कहलाती हैं। इन सब पडिमाओं में पहली पडिमा में बताये गये सब नियमों का पालन किया जाता है + |
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(८) आठवीं पडिमा का समय सात दिन रात है । इसमें अपानक उपवास किया जाता है अर्थात् एकान्तर चौविहार उपवास करना चाहिए और ग्राम नगरादि के बाहर जाकर उत्तानासन ( आकाश की ओर मुंह करके लेटना), पाश्र्वासन ( एक पसवाड़े से लेटना) अथवा निषद्यासन (पैरों को बराबर रख कर बैठना ) से ध्यान लगा कर समय व्यतीत करना चाहिए । ध्यान करते समय देवता, मनुष्य अथवा तिर्यञ्च सम्बन्धी कोई उपसर्ग उत्पन्न हो, तो ध्यान से विचलित नही होना चाहिए, किन्तु अपने स्थान पर निश्चल रूप से बैठे रहकर ध्यान में दृढ़ रहना चाहिए। यदि मल मूत्र आदि की शंका उत्पन्न हो जाय, तो नहीं रोकना चाहिए, किन्तु पहले से देखे हुए स्थान पर जाकर उनकी निवृत्ति कर लेनी चाहिए । आहार पानी की दत्तियों के अतिरिक्त इस पडिमा में पूर्वोक्त सब नियमों का पालन करना चाहिए । इस पडिमा का नाम 'प्रथम सप्त रात्रि दिवस की भिक्खु पडिमा '
है ।
९ नवमी का नाम 'द्वितीय सप्त रात्रि दिवस की पडिमा है। इसकी अवधि सात दिन रात है । इसमें ग्राम नगरादि के बाहर जाकर दण्डासन, लगुडासन और
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+ टीकाकार इन पडिमाओं का समय भिन्न रूप से मानते है, और इनका साधना काल भी मानते है ।
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