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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-भगवान् की शारीरिक शोभा
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हुआ स्कन्दक परिव्राजक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार वन्दना नमस्कार कर पर्युपासना करने लगा।
विवेचन-भगवान् का एक विशेषण 'वियट्टभोई' दिया है। जिसका अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार दिया है ;___"वियट्टभोइ-व्यावृत्ते व्यावृत्ते सूर्ये भुङ्क्ते इत्येवंशीलो व्यावृत्तभोजी-प्रतिदिन भोजी इत्यर्थ," अर्थात् सूर्य के वापिस लौटने पर आहार लेने अर्थात् प्रतिदिन आहार करने वाले । जिस समय स्कन्दक परिव्राजक ने भगवान् को देखा, उन दिनों भगवान् उपवास आदि तपस्या नहीं करते थे, किन्तु प्रतिदिन आहार करते थे।
भगवान् के शरीर के लिए उदार, कल्याण, शिव आदि विशेषण देते हुए शास्त्रकार ने 'लक्खग वंजण गुणोववेयं' विशेषण भी दिया है । जिसका अर्थ इस प्रकार किया गया है
जलदोणे अद्धभार समुहाई समूसिओ उ जो णवओ।
माणुम्माणपमाणं तिविहं खलु लक्खणं एयं ॥ अर्थ-एक द्रोण पानी निकले तो मान, आधा भार वजन हो, तो उन्मान और जो पुरुष, मुख की ऊंचाई से नव गुणा ऊंचा हो वह प्रमाण युक्त माना गया है। इस तरह लक्षण तीन प्रकार का है । जैसे जल से भरी हुई एक कुण्डी हो, उसमें समाने योग्य पुरुष को उसमें बिठावे, तो उस कुण्डी में से एक द्रोण (बत्तीस सेर) पानी बाहर निकल जाय तो वह पुरुष 'मानोपेत' कहलाता है । किसी एक पुरुष को एक बड़े तराजू पर तोला जाय और उसका वजन अर्द्धभार (चार हजार तोला) जितना हो, तो वह पुरुष उन्मानोपेत कहलाता है। जिस पुरुष की ऊंचाई अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल प्रमाण हो, तो वह
प्रमाणोपेत कहलाता है। इस तरह मान, उन्मान और प्रमाण, यह तीन प्रकार का लक्षण | • है । शरीर में जो तिल मस आदि होते हैं वे 'व्यंजन' कहलाते हैं । अथवा जो जन्म से ही
स्वाभाविक हों वह 'लक्षण' कहलाता है और पीछे से होने वाले व्यंजन कहलाते हैं । सौभाग्य आदि 'गुण' कहलाते हैं । अथवा लक्षण और व्यंजन रूप गुणों से जो युक्त हो, उसे 'लक्षण व्यंजनगुणोपपेत' कहते हैं ।
उपर्युक्त सम्पूर्ण गुणों से युक्त भगवान् का शरीर था। भगवान् को देख कर . दक परिव्राजक को अत्यन्त आन्द हर्ष और संतोष हुआ। भगवान् को विधियुक्त बन्दना करके वह उनकी पर्युपासनाने लगा।
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