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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक की साधना
तए णं से खंइए कच्चायणस्सगोते, अणगारे जाए, हरिया - समिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिव खेवणासमिए, उच्चार - पासवण - खेल-जल्ल - सिंघाणपरिट्ठावणिया समिए मणसमिए, वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तभयारी, चाई लज्जू घण्णे खतिखमे जिइंदिए सोहिए अणि - याणे अप्पुस्सुए अबहिल्ले से सुसामण्णरए दंते, इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरह ।
विशेष शब्दों के अर्थ-चाई - त्यागी, लज्जु - लज्जावान् = सरल, खंतिखमे-क्षमापूर्वक सहने वाले, सोहिए - शोधक, अणियाणे-निदान रहित, अप्पुस्सुए - उत्सुकता रहित, अब'हिल्ले से - अबहिर्गेश्य = मंत्र से बाहर चित नहीं रखने वाला, सुसामण्णरए - संयम में लीन, से - इन्द्रियों का दमन करने वाले, पुरओकाउं आगे करके 1
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भावार्थ- अब वे कात्यायनगोत्री स्कन्दकजी, अऩगार बन गये। वे ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानमण्डमात्र निक्षेपणासमिति और उच्चारप्रश्रवणले लजलसंधाण-परिस्थापनिका समिति, एवं मनःसमिति, वचन समिति, कायासमिति, इन आठों समितियों का सावधानतापूर्वक पालन करने लगे । मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायमुप्ति से गुप्त रहने लगे अर्थात् मन, वचन, काया को वश में रखने लगे । वे सबको वश में रखने वाले, इन्द्रियों को वश में रखने वाले, गुप्तब्रह्मचारी, त्यागी, लज्जावान् ( संयमवान् - सरल ) धन्य (धर्म- धनवान् ) क्षमावान्, जितेन्द्रिय, व्रतों के शोधक, किसी प्रकार का निदान ( नियाणा) न करने वाले, आकांक्षा रहित, उतावल रहित, संयम से बाहर चित्त को न रखने वाले, श्रेष्ठ साधु व्रतों में लीन और दान्त ऐसे स्कन्दक सुनि, इन निर्ग्रन्थ प्रवचनों को आगे ( सामने) रख कर विचरण करने लगे अर्थात् वे इन निर्ग्रन्थ प्रवचनों को सन्मुख रखते हुए इन्हीं के अनुसार सब क्रियाएँ करने लगे ।
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