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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-भगवान् का उत्तर
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'खंदया !' ति समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चायणस्सगोतं एवं वयासी-से णूणं तुम खंदया ! सावत्थीए नयरीए पिंगलएणं नियंठेणं, वेसालियसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए-मागहा ! किं सअंते लोए; अणंते लोए ? एवं तं चेव जाव-जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वं आगए । से णूणं खदया ! अयमढे समढे ? हंता, अत्थि।
विशेष शब्दों के अर्थ-वयासी–बोले, लोए-लोक ।
भावार्थ-श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने स्कन्दक परिव्राजक से. कहा कि-हे स्कन्दक ! श्रावस्ती नगरी में वैशालिक श्रावक पिंगलक नाम के निर्ग्रन्थ ने तुम से पांच प्रश्न (लोक सान्त है ?या अनन्त है ? आदि) पूछे । तुम उनका उत्तर नहीं दे सके । इसलिए उन प्रश्नों का उत्तर पूछने के लिए तुम मेरे पास आये हो । हे स्कन्दक ! क्या यह बात सत्य है ?
- स्कन्दक ने कहा-हाँ, भगवन् ! यह बात सत्य है। विवेचन-भगवान् ने आर्य स्कन्दक को सम्बोधकर उनके आने का कारण बतलाया।
जेवि य ते खंदया ! अयमेयारूवे अज्झथिए, चिंतिए, पत्थिए, मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था-किं सअंते लोए, अणते लोए । तस्स वि यणं अयमद्वे-एवं खलु मए खंदया ! चउविहे लोए पण्णत्ते, तं जहाः-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। १ दव्वओ णं एगे लोए सअंते, २ खेत्तओ णं लोए असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं, असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओ परिचखेवेणं पण्णता, अस्थि पुण से अंते।३ कालओणंलोए णकयाइ ण आसी
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