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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक - भगवान् की शारीरिक शोभा ४०३
णं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियट्टभोइस्स सरीरयं ओरालं, सिंगारं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं अणलंकियविभूसियं लक्खणवंजण - गुणोववेयं सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणं चिट्टह । तए णं से खंदर कच्चायणस्सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स वियट्ट - भोइस्स सरीरयं ओलं जाव - अईव अईव उवसोभेमाणं पासइ, पासिता हट्ट तुटुचितमादिए दिए पीरमणे परमसोमणसिए हरि - सवसविसप्पमाणहियए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छछ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेह जाव - पज्जुवासइ ।
विशेष शब्दों के अर्थ - वियट्टभोई - व्यावृत्तभोजी = प्रतिदिन आहार करने वाले, ओरालं- उदार, सिगारं-शृंगारित हो वैसा, कल्लाणं- कल्याणरूप, श्रेयस्कर, सिवं - शिवरूप, अलं किविभूतियं बिना अलंकार के भी विभूषित, लक्खण- लक्षण, वंजण-तिल मस आदि व्यंजन, गुणोववेयं - गुणयुक्त, सिरीए -शोभारूप लक्ष्मी, अईव - अत्यन्त उवसोभेमाणंशोभायमान, हट्ट - विस्मयपूर्वक = अत्यन्त संतुष्ट, चित्तमाणंदिए - आनन्दित मनवाला, बिए - हर्षित, पोमणे - प्रीतियुक्त मनवाला, परमसोमणसिए - परम सोमनस्ययुक्त, हरिसवसविसप्पमाण हियए - हर्षातिरेक से विशाल बने हुए हृदय वाला !
भावार्थ - इसके बाद गौतम स्वामी स्कन्दक परिव्राजक के साथ जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी थे वहां जाने लगे। उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी व्यावृत भोजी ( प्रतिदिन भोजन करने वाले ) थे । इसलिए उनका शरीर उदार (प्रधान) कल्याणरूप, शिवरूप, धन्यरूप, मंगलरूप, बिना अलंकार के ही शोभित, उत्तम लक्षण व्यञ्जन और गुणों से युक्त था और अत्यन्त शोभित हो रहा था । अतः उन्हें देखकर स्कन्दक परिव्राजक को अत्यन्त हर्ष हुआ, संतोष हुआ, आनन्द हुआ । इस प्रकार संतुष्ट, आनन्दित और हर्षित होता
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