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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक - भगवान् की सर्वज्ञता का परिचय ४०१
जाणामि खंदया ! तए णं से खंदर कचायणस्सगोत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी - गच्छामो णं गोयमा ! तव धम्मायरियं, धम्मोवएसयं, समणं भगवं महावीरं वंदामो, नम॑सामो, जाव - पज्जुवासामो । अहा सुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ।
विशेष शब्दों का अर्थ - पच्चुवगच्छह-सामने जाता है, सागयं स्वागत, सुसागयंसुस्वागत, अणुरागयं - अन्वागत, सागयमणुरागयं-स्वागत अन्वागत, तीयपच्चप्पण्णमणागयवियाणए - भूत, भविष्यत् और वर्तमान के ज्ञाता, अब्भट्ठेइ - खड़े हुए, खिप्पामेव- शीघ्र ही, णूणं-- अवश्य ही, रहस्सकडे --- छुपाई हुई, अक्खाए - कह दिया, धम्मायरिए - धर्माचार्य, धम्मोवएसए - धर्मोपदेशक. ।
भावार्थ - इसके बाद कात्यायनगोत्री स्कन्दक परिव्राजक को पास आया हुआ देख कर गौतम स्वामी अपने आसन से उठे और स्कन्दक परिव्राजक के सामने गये। फिर स्कन्दक परिव्राजक से कहा कि - हे स्कन्दक ! स्वागत है, सुस्वागत है, तुम्हारा आना अच्छा हुआ, तुम्हारा आना मला हुआ ।
फिर गौतम स्वामी ने कहा कि हे स्कन्दक ! श्रावस्ती नगरी में वंशाfor श्रावक पिंगलक निर्ग्रन्थ ने तुमसे पांच प्रश्न पूछे। तुम उनका उत्तर नहीं दे सके । तुम्हारे मन में शंका कांक्षा आदि उत्पन्न हुए। तुम उन प्रश्नों के उत्तर पूछने के लिए यहाँ भगवान् के पास आये हो । हे स्कन्दक ! क्या यह बात सत्य है ? स्कन्दक ने कहा- हां, गौतम ! यह बात सत्य है । परन्तु हे गौतम ! मुझे यह बतलाओ कि कौन ऐसा ज्ञानी या तपस्वी पुरुष है जिसने मेरे मन की गुप्त बात तुमसे कह दी ? और तुम मेरे मन की गुप्त बात जान गए ।
तब गौतम स्वामी ने कहा कि -- हे स्कन्दक़ ! मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक हैं, अरिहास हैं, जिन हैं, केवली है, भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल के ज्ञाता हैं. सर्वज्ञ सर्व
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