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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ स्कन्दक का श्री गौतम स्वामी द्वारा स्वागत
विवेचन - भगवान् ने स्कन्दक परिव्राजक के आने की बात गौतम स्वामी से कही । गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने उसके आने का कारण' बताया और यह भी बताया कि स्कन्द मुण्डित होकर प्रव्रजित होगा । यह बात चल ही रही थी कि इतने स्कन्दक परिव्राजक उस स्थान के निकट पहुँच गये ।
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तए णं भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणस्सगोतं अदूरागयं जाणित्ता खिप्पामेव अब्भुट्टेइ, अब्भुट्टित्ता खिप्पामेव पच्चुवगच्छइ । जेणेव खंदए कच्चायणस्सगोत्ते तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता खंदयं कच्चायणस्सगोत्तं एवं वयासी - हे खंदया ! सागयं खंदया ! सुसागयं खेदया ! अणुरागयं खंदया ! सागयमणुरागयं खंदया ! सेणूणं तुमं खंदया ! सावत्थीए नयरीए पिंगलएणं णामं नियंठेणं वेसालियसावरणं इणमवखेवं पुच्छिए-मागहा ! किं सअंते लोए, अणंते लोए ? तं चैव जेणेव इहं, तेणेव हव्वमागए, से णूणं खंदया ! अट्टे समट्ठे ? हंता, अस्थि । तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी से केस णं गोयमा ! तहारूवे णाणी वा, तवस्सी वा ? जेणं तव एस अट्ठे मम ताव रहस्सकडे हव्वं अक्खाए, जओ णं तुमं जाणसि ? तए णं से भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणसगोतं एवं वयासी एवं खलु खंदया ! मम धम्मायरिए, धम्मो - वएसए, समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाण- दंसणधरे, अरहा जिणे केवली तीय-पच्चुप्पण्ण-मणागयवियाणए, सव्वष्णू, सव्वदरिसी, जेणं मम एस अट्ठे तव ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं अहं
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